Dussehra 2025: मध्यप्रदेश के ऐसे गांव जहां लंकापति रावण जलता नहीं, होती है पूजा, जानें क्यों है ऐसी अनोखी परंपरा

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हाइलाइट्स

  • इंदौर में रावण मंदिर, पूजा की अनोखी परंपरा
  • विदिशा के गांव में दशहरे पर रावण की आरती
  • गौहर परिवार बच्चों के नाम रखता है लंकेश-मेघनाथ

Dussehra 2025: देशभर में विजयादशमी (Dussehra) के दिन रावण का दहन किया जाता है, लेकिन मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में परंपरा बिल्कुल अलग है। यहां रावण को बुराई का प्रतीक नहीं, बल्कि भक्ति और ज्ञान का स्वरूप मानकर उसकी पूजा की जाती है। इंदौर और विदिशा दोनों जगह दशहरे पर रावण के पूजन की यह अनूठी परंपरा वर्षों से चली आ रही है।

इंदौर में रावण का मंदिर।

इंदौर में रावण मंदिर, 10-10-2010 को 10 बजकर 10 मिनट पर हुई स्थापना

इंदौर के परदेशीपुरा क्षेत्र के गौहर नगर में रावण का एक मंदिर स्थित है, जिसे लंकेश्वर महादेव मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर की स्थापना बेहद खास तारीख और समय पर हुई थी। 10 अक्टूबर 2010 को सुबह 10 बजकर 10 मिनट और 10 सेकंड पर गौहर परिवार ने रावण की प्रतिमा स्थापित की थी। तब से हर रोज सुबह 10 बजकर 10 मिनट पर रावण की विशेष पूजा की जाती है।

इंदौर में रावण का मंदिर।

गौहर परिवार के मुखिया महेश गौहर बताते हैं कि साल 1966 में जब वे अपने मामा की बारात में मंदसौर गए थे, तब उन्होंने देखा कि विवाह की रस्मों के दौरान दूल्हा-दुल्हन ने रावण की पूजा की। इसी घटना के बाद उन्होंने रावण पर शोध किया और पाया कि रावण केवल लंका का राजा ही नहीं, बल्कि महान पंडित और भगवान शिव का भक्त था। तभी से उनका परिवार रावण की पूजा करता आ रहा है और आज पूरा 30 सदस्यीय परिवार उसकी भक्ति करता है।

बच्चों के नाम भी रावण से जुड़े

महेश गौहर के अनुसार, रावण को बुराई का प्रतीक मानना गलत है। वे मानते हैं कि रावण माता सीता के पिता थे और उन्हें सम्मान मिलना चाहिए। इसी सोच के तहत उन्होंने अपने परिवार में बच्चों के नाम भी रावण से जुड़े रखे हैं। परिवार में बच्चों के नाम लंकेश, मेघनाथ और चंद्रघटा (शूर्पणखा) हैं। महेश गौहर का दावा है कि जो लोग रावण को जलाते हैं, उनके जीवन में मुश्किलें बढ़ती हैं, जबकि जो उसकी शरण में आते हैं, उनके परिवार सुख और समृद्धि आती है।

मंदिर में होती हैं तांत्रिक क्रियाएं

रावण के इस मंदिर में महेश गौहर विशेष पूजा और तांत्रिक क्रियाएं भी करते हैं। हालांकि, इस दौरान आम श्रद्धालुओं को प्रवेश की अनुमति नहीं होती। उनका कहना है कि मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार और अन्य राज्यों से लोग रावण के दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं। दशहरे पर भी यह मंदिर आकर्षण का केंद्र बना रहता है।

विदिशा का रावण गांव, जहां होती है भव्य पूजा

मध्य प्रदेश का विदिशा जिला भी रावण पूजा की परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। नटेरन तहसील से करीब 6 किलोमीटर दूर स्थित एक गांव को लोग रावण गांव कहते हैं। यहां दशहरे के दिन रावण का दहन नहीं होता, बल्कि उसकी भव्य पूजा-अर्चना की जाती है। गांव के लोग रावण को देवता मानते हैं और श्रद्धा से उसकी आरती उतारते हैं।

गांव में परमार काल का एक प्राचीन मंदिर है, जिसमें रावण की विशाल लेटी हुई प्रतिमा स्थापित है। कहा जाता है कि यह प्रतिमा सदियों पुरानी है। मंदिर की दीवारों पर रावण की आरती अंकित है, जिसे प्रतिदिन श्रद्धालु पढ़ते हैं। यहां परंपरा यह है कि किसी भी शुभ कार्य, खासकर विवाह से पहले, पहला निमंत्रण रावण बाबा को दिया जाता है। विवाह की शुरुआत प्रतिमा की नाभि में तेल भरकर की जाती है।

विदिशा में भी होती है रावण की पूजा।

रावण को मानते हैं पूर्वज, घर-वाहनों पर लिखते हैं ‘जय लंकेश’

गांव के कई ब्राह्मण परिवार खुद को रावण का वंशज मानते हैं। यही कारण है कि लोग अपने घरों, दुकानों और वाहनों पर ‘जय रावण बाबा’ और ‘जय लंकेश’ लिखवाते हैं। कई लोग शरीर पर भी रावण के नाम के टैटू गुदवाते हैं। विवाहित महिलाएं जब मंदिर के सामने से गुजरती हैं, तो घूंघट निकालकर रावण बाबा को प्रणाम करती हैं।

क्या हैं मान्यताएं

गांव से जुड़ी कई किवदंतियां भी प्रचलित हैं। कहा जाता है कि गांव से करीब तीन किलोमीटर दूर बूधे की पहाड़ी पर ‘बुद्धा राक्षस’ नामक असुर रहता था, जो रावण से युद्ध करना चाहता था। रावण ने उसे सलाह दी कि उसकी प्रतिमा बनाकर उससे युद्ध करे। आज भी यह प्रतिमा मंदिर में मौजूद है। इसके अलावा, गांव के तालाब के बारे में भी मान्यता है कि उसमें रावण की तलवार सुरक्षित है। दशहरे के दिन श्रद्धालु इस तालाब के किनारे इकट्ठा होते हैं।

 

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