बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग: जब रावण की भक्ति से द्रवित हुए भोलेनाथ, जन्मा आस्था का यह चमत्कारी धाम

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भगवान शिव के विश्व प्रसिद्ध 12 ज्योतिर्लिंगों में से बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग नौवां और अत्यंत पूजनीय ज्योतिर्लिंग है। सावन के पावन महीने में जब आस्था की लहरें उमड़ती हैं, तब लाखों कांवड़िए श्रद्धा और भक्ति से ओतप्रोत होकर बाबा बैद्यनाथ का आशीर्वाद पाने देवघर पहुंचते हैं। यहां की भूमि को ‘चिता भूमि’ और यहां के ज्योतिर्लिंग को ‘कामना लिंग’ कहा जाता है, क्योंकि मान्यता है कि यहां की पूजा से हर सच्ची मनोकामना पूरी होती है।

बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा सीधे लंकापति रावण और भगवान शिव से जुड़ी है—एक ऐसी कहानी जो भक्ति, छल और देवताओं की रणनीति से भरी है।

जब रावण की कठोर तपस्या से प्रसन्न हो गए भोलेनाथ

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार रावण के मन में यह प्रबल इच्छा जगी कि वह भगवान शिव को लंका में स्थापित करे ताकि उसका साम्राज्य और शक्तिशाली बन जाए। अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए उसने घोर तपस्या शुरू कर दी। कहते हैं, रावण ने अपने नौ सिर काटकर यज्ञ में अर्पित कर दिए। जब वह दसवां सिर काटने ही वाला था, तभी भगवान शिव उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर प्रकट हो गए और उसे वरदान मांगने को कहा।

रावण ने वरदान में शिव का आत्मलिंग (शिवलिंग) मांगा, जिसे शिव ने दे तो दिया, लेकिन एक शर्त के साथ—जहां भी यह शिवलिंग जमीन पर रखा जाएगा, वहीं स्थापित हो जाएगा।

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जब भगवान विष्णु ने धरती की रक्षा के लिए रची लीला

भगवान विष्णु ने रावण की छिपी मंशा को भांप लिया और समझ गए कि यदि यह शिवलिंग लंका पहुंच गया, तो ब्रह्मांड का संतुलन बिगड़ जाएगा। तब देवताओं के साथ मिलकर उन्होंने एक योजना बनाई। जब रावण आत्मलिंग को लेकर लंका की ओर जा रहा था, तब वरुण देव को उसके पेट में भेजा गया जिससे उसे लघुशंका की जरूरत पड़े।

रास्ते में उसे एक ग्वाला दिखा—जो कोई और नहीं, बल्कि स्वयं भगवान विष्णु थे। रावण ने ग्वाले से शिवलिंग कुछ देर थामने की विनती की और लघुशंका के लिए चला गया। जैसे ही वह गया, भगवान विष्णु ने शिवलिंग जमीन पर रख दिया, जिससे वह वहीं स्थापित हो गया।

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जब रावण की सारी कोशिशें हो गईं नाकाम

रावण लौटते ही चौंक गया। उसने देखा कि शिवलिंग जड़ से ज़मीन में स्थापित हो चुका है। उसने उसे हटाने की बहुत कोशिश की, लेकिन विफल रहा। गुस्से में तिलमिलाए रावण ने शिवलिंग को ज़मीन में और गाड़ने की कोशिश की, जिससे उसका कुछ हिस्सा धरती में समा गया। तभी से यह स्थान बैद्यनाथ धाम कहलाता है और भगवान शिव यहां बैद्यनाथ के रूप में वास करने लगे।

‘बैद्यनाथ’ नाम कैसे पड़ा? जानिए इसके पीछे की कहानी

जब रावण ने अपने नौ सिर काटे थे, तो उसकी पीड़ा असहनीय हो चुकी थी। भगवान शिव उस समय स्वयं वैद्य (चिकित्सक) के रूप में प्रकट हुए और रावण की पीड़ा को शांत किया। तभी से इस स्थान को ‘बैद्यनाथ’ कहा जाने लगा। आज भी श्रद्धालु इस स्थान को मोक्ष और मनोकामना पूर्ति का केंद्र मानते हैं।



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