इस सावन शिवभक्ति को बनाएं खास, घूमें ये 8 प्रसिद्ध मंदिर, पाएं महादेव का आशीर्वाद
सावन का पावन महीना 11 जुलाई से शुरू हो चुका है। यह वो समय होता है जब श्रद्धा अपने चरम पर होती है और दिल पूरी श्रद्धा से भोलेनाथ की भक्ति में डूबा होता है। हिंदू धर्म में सावन का महीना भगवान शिव की भक्ति और आस्था का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है। इस खास मौके पर हम आपको उन आठ अद्भुत और दिव्य शिव मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके दर्शन मात्र से ही कई भक्तों का भाग्य बदल गया है। आइए जानते हैं इन चमत्कारी मंदिरों तक पहुंचने का तरीका और उनसे जुड़ी विशेष मान्यताएं, ताकि आप भी इस सावन अपनी आस्था को एक नई उड़ान दे सकें।
# अमरनाथ गुफा, जम्मू कश्मीर
शिवभक्ति की गहराई को महसूस करने के लिए हर भक्त के दिल में एक ही ख्वाहिश होती है—जीवन में एक बार अमरनाथ गुफा के दर्शन ज़रूर हों। जम्मू-कश्मीर की सुरम्य वादियों में स्थित यह गुफा न केवल आध्यात्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यहां पर प्राकृतिक रूप से बनने वाला बर्फ का शिवलिंग अपने आप में एक चमत्कार जैसा अनुभव देता है। सावन के पवित्र महीने में लाखों श्रद्धालु श्रद्धा, विश्वास और समर्पण के साथ अमरनाथ यात्रा के लिए निकलते हैं।
हवाई मार्ग : श्रीनगर इंटरनेशनल एयरपोर्ट यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है। यहां से आप टैक्सी या बस द्वारा पहलगाम (91 किमी) और बालटाल (93 किमी) तक पहुंच सकते हैं। इन दोनों बेस पॉइंट्स से पंचतरणी तक हेलिकॉप्टर सेवा भी उपलब्ध रहती है — लेकिन अंतिम पड़ाव तक आपको पैदल या पालकी से ही जाना होता है, जो भक्ति और धैर्य की सच्ची परीक्षा होती है।
रेल मार्ग : अगर आप ट्रेन से यात्रा करना चाहते हैं, तो जम्मूतवी रेलवे स्टेशन सबसे नजदीकी है। यह पहलगाम से लगभग 250 किमी और बालटाल से 275 किमी दूर स्थित है। यहां से टैक्सी या बस से आगे की यात्रा की जा सकती है।
सड़क मार्ग : सड़क मार्ग से यात्रा करने वालों के लिए दो मुख्य रूट हैं—पहला है जम्मू, पटनीटॉप, अनंतनाग, पहलगाम, चंदनवाड़ी, शेषनाग, पंचतरणी होते हुए गुफा तक का रास्ता। दूसरा रूट है जम्मू, श्रीनगर, गांदरबल, सोनमर्ग, बालटाल, डोमेल होते हुए अमरनाथ गुफा तक का।
लोकल ट्रांसपोर्ट : जम्मू से बालटाल और पहलगाम के लिए टैक्सी व बसें आसानी से उपलब्ध हैं। इसके बाद बेस कैंप से आगे की यात्रा घोड़ा, पालकी या डंडी से की जाती है। यह सफर भले ही शारीरिक रूप से थका देने वाला हो, लेकिन शिवभक्ति की ऊर्जा से भरा होता है।
# काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी
काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और वाराणसी नगरी में गंगा नदी के पवित्र तट पर स्थित है। यह मंदिर न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से, बल्कि भावनात्मक रूप से भी शिवभक्तों के हृदय में विशेष स्थान रखता है। सावन के पावन महीने में यहां का माहौल भक्ति और श्रद्धा से ओतप्रोत हो जाता है। लाखों कांवड़िए दूर-दूर से गंगाजल लेकर यहां आते हैं और भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं, जिससे मन को असीम शांति और पुण्य की अनुभूति होती है।
हवाई मार्ग: काशी पहुंचने के लिए लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा सबसे निकटतम विकल्प है, जो मंदिर से लगभग 25 किमी दूर स्थित है। दिल्ली, मुंबई और कोलकाता सहित देश के कई बड़े शहरों से यहां के लिए नियमित उड़ानें उपलब्ध हैं। एयरपोर्ट से मंदिर तक टैक्सी या ऑटो से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग: रेल यात्रियों के लिए वाराणसी जंक्शन और काशी रेलवे स्टेशन सबसे उपयुक्त हैं, जो मंदिर से लगभग 3 से 5 किमी की दूरी पर स्थित हैं। देश के अधिकांश हिस्सों से इन स्टेशनों के लिए सुविधाजनक रेल सेवाएं मौजूद हैं।
सड़क मार्ग: वाराणसी नेशनल हाईवे से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है, जिससे सड़क यात्रा भी बेहद सरल और आरामदायक बन जाती है। लखनऊ से इसकी दूरी लगभग 300 किमी और प्रयागराज से लगभग 120 किमी है। कई निजी व सरकारी बसें, टैक्सियां और कैब सेवाएं यहां तक पहुंचने के लिए उपलब्ध हैं।
लोकल ट्रांसपोर्ट: वाराणसी शहर के भीतर मंदिर तक पहुंचने के लिए ऑटो-रिक्शा, साइकिल रिक्शा या ई-रिक्शा जैसे स्थानीय साधन आसानी से मिल जाते हैं। यदि आप लंबी कतारों से बचना चाहते हैं, तो मंदिर प्रशासन द्वारा शुरू की गई ऑनलाइन दर्शन पंजीकरण की सुविधा का लाभ उठा सकते हैं। इसके लिए आप www.shrikashivishwanath.org/ पर रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं।
# महाकालेश्वर मंदिर, उज्जैन
महाकालेश्वर मंदिर, उज्जैन में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक अत्यंत प्रतिष्ठित मंदिर है, जो अपने दक्षिणमुखी शिवलिंग के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यह मंदिर श्रद्धा, आस्था और ऊर्जा से परिपूर्ण स्थान है, जहां सावन के महीने में हर दिन एक पर्व जैसा लगता है। भक्तजन सुबह से ही भोलेनाथ की भस्म आरती में शामिल होने के लिए कतारों में लग जाते हैं — यह दृश्य हर किसी के मन को छू लेने वाला होता है।
हवाई मार्ग: उज्जैन पहुंचने के लिए इंदौर का देवी अहिल्याबाई होल्कर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा सबसे निकट है, जो लगभग 55 किमी दूर स्थित है। यहां से टैक्सी या बस के माध्यम से आप आराम से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग: ट्रेन से यात्रा करने वालों के लिए उज्जैन जंक्शन रेलवे स्टेशन एक सुविधाजनक विकल्प है, जो मंदिर से लगभग 2 किमी की दूरी पर है। दिल्ली, मुंबई और भोपाल जैसे प्रमुख शहरों से यहां सीधी ट्रेनें आसानी से उपलब्ध हैं।
सड़क मार्ग: यदि आप सड़क मार्ग से आना चाहें तो उज्जैन भोपाल से लगभग 190 किमी और इंदौर से 55 किमी दूर है। राज्य परिवहन की बसों के अलावा निजी टैक्सी सेवाएं भी पर्याप्त संख्या में उपलब्ध रहती हैं, जिससे यात्रा सुगम हो जाती है।
लोकल ट्रांसपोर्ट: उज्जैन शहर के भीतर मंदिर तक पहुंचने के लिए ऑटो-रिक्शा या टैक्सी एक सरल और त्वरित विकल्प हैं। ध्यान रखें कि भस्म आरती, जो महाकालेश्वर की सबसे पावन और प्रसिद्ध आरती मानी जाती है, में शामिल होने के लिए पहले से ऑनलाइन पंजीकरण कराना आवश्यक है। इसके लिए www.shrimahakaleshwar.com वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन किया जा सकता है।
# बैद्यनाथ धाम, देवघर
झारखंड स्थित बैद्यनाथ धाम देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जिसे श्रद्धालु “बाबा धाम” के नाम से भी पुकारते हैं। यह पवित्र स्थल शिवभक्तों के लिए न सिर्फ एक धार्मिक ठिकाना है, बल्कि आस्था की पराकाष्ठा भी है। खासकर सावन के महीने में, यहां देशभर से लाखों श्रद्धालु कांवड़ लेकर पहुंचते हैं — एक ऐसा दृश्य जो आंखों को भिगो देता है और मन को शिवमय कर देता है। भक्तों की भीड़, हर-हर महादेव के जयघोष और घंटियों की गूंज इस धाम को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देती है।
हवाई मार्ग: देवघर पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी एयरपोर्ट रांची का बिरसा मुंडा हवाई अड्डा (250 किमी) और पटना एयरपोर्ट (270 किमी) हैं। इन दोनों स्थानों से टैक्सी या बस के ज़रिए आसानी से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। सावन में यात्रियों की अधिक संख्या को देखते हुए यहां खास सेवाएं भी बढ़ा दी जाती हैं।
रेल मार्ग: अगर आप ट्रेन से आना चाहें तो जसीडीह जंक्शन रेलवे स्टेशन, जो देवघर से केवल 8 किमी दूर है, सबसे उपयुक्त रहेगा। स्टेशन से मंदिर तक की दूरी तय करने के लिए ऑटो और टैक्सी आसानी से मिल जाते हैं।
सड़क मार्ग: देवघर सड़क मार्ग से रांची, पटना और कोलकाता जैसे बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है। सावन के दौरान विशेष कांवड़ बस सेवाएं भी चलाई जाती हैं, ताकि श्रद्धालुओं को यात्रा में कोई असुविधा न हो।
लोकल ट्रांसपोर्ट: जसीडीह स्टेशन से मंदिर परिसर तक पहुंचने के लिए ऑटो या निजी टैक्सी एक सरल और तेज़ विकल्प है। दर्शन व्यवस्था को सुगम बनाने के लिए मंदिर प्रशासन द्वारा विशेष लाइनें और मार्ग निर्धारित किए जाते हैं, जिससे भक्त शांति और श्रद्धा के साथ दर्शन कर सकें।
# सोमनाथ मंदिर, गुजरात
गुजरात के समुद्र तट पर स्थित सोमनाथ मंदिर न सिर्फ 12 ज्योतिर्लिंगों में पहला स्थान रखता है, बल्कि यह भारतीय आस्था और संस्कृति का एक अद्वितीय प्रतीक भी है। इसकी दिव्यता, वास्तुकला और ऐतिहासिक महत्त्व हर श्रद्धालु को अपनी ओर खींचता है। कहते हैं कि यहां आकर जो सच्चे मन से प्रार्थना करता है, उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है। खासकर सावन के महीने में, जब लाखों भक्त जलाभिषेक के लिए यहां पहुंचते हैं, तो मंदिर परिसर शिवभक्ति की गूंज से भर जाता है।
हवाई मार्ग : हवाई मार्ग से यहां आने के लिए सबसे नजदीकी एयरपोर्ट दीव हवाई अड्डा (90 किमी) और राजकोट हवाई अड्डा (190 किमी) हैं। इन दोनों स्थानों से श्रद्धालु टैक्सी या बस की मदद से मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं। सावन के समय प्रशासन विशेष सुविधाएं उपलब्ध कराता है ताकि यात्रियों की सुविधा बनी रहे।
रेल मार्ग: रेल मार्ग से यात्रा करने वाले यात्रियों के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन वेरावल है, जो मंदिर से लगभग 7 किमी दूर स्थित है। अहमदाबाद और मुंबई जैसे शहरों से वेरावल तक नियमित ट्रेनें चलती हैं, जिससे यात्रा सहज और किफायती बन जाती है।
सड़क मार्ग : सड़क मार्ग से यात्रा करने वालों के लिए अहमदाबाद (400 किमी) और जूनागढ़ (85 किमी) से सोमनाथ मंदिर तक सीधी बसें और टैक्सियां उपलब्ध हैं। ये रास्ते सुंदर प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर होते हैं, जो यात्रियों के अनुभव को और भी विशेष बना देते हैं।
लोकल ट्रांसपोर्ट: लोकल ट्रांसपोर्ट के तहत श्रद्धालु वेरावल से सोमनाथ मंदिर तक ऑटो या टैक्सी के जरिए आसानी से पहुंच सकते हैं। दर्शन और मंदिर संबंधित जानकारी के लिए श्रद्धालु www.somnath.org वेबसाइट पर जाकर विवरण प्राप्त कर सकते हैं।
# त्र्यंबकेश्वर मंदिर, नासिक
श्रावण का महीना भगवान शिव की भक्ति में लीन होने का सबसे शुभ समय माना जाता है, और ऐसे में त्र्यंबकेश्वर मंदिर की यात्रा हर शिवभक्त के लिए किसी सौभाग्य से कम नहीं होती। गोदावरी नदी के तट पर स्थित यह मंदिर अपने त्रिमुखी शिवलिंग के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि यहां रुद्राभिषेक कराने से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण करते हैं। सावन में यहां का माहौल पूरी तरह भक्तिमय हो जाता है — जहां दूर-दूर से आए श्रद्धालु ‘हर हर महादेव’ की गूंज से पूरे वातावरण को शिवमय बना देते हैं।
हवाई मार्ग : हवाई मार्ग से यहां आने वाले यात्रियों के लिए सबसे नजदीकी एयरपोर्ट नासिक का ओझर हवाई अड्डा, जो मंदिर से करीब 30 किमी की दूरी पर है। वहीं, दूसरा विकल्प मुंबई हवाई अड्डा भी है, जो लगभग 180 किमी दूर है। दोनों ही जगहों से श्रद्धालु टैक्सी या बस की मदद से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग : रेल मार्ग से यात्रा करने वालों के लिए नासिक रोड रेलवे स्टेशन, मंदिर से लगभग 35 किमी दूर स्थित है। वहां से टैक्सी या बस लेकर आसानी से त्र्यंबकेश्वर मंदिर पहुंचा जा सकता है।
सड़क मार्ग : सड़क मार्ग से नासिक तक पहुंचना भी बहुत सुविधाजनक है। मुंबई (180 किमी) और पुणे (200 किमी) जैसे बड़े शहरों से यह मंदिर सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। रास्ते में प्रकृति की सुंदरता और सहयाद्रि की पहाड़ियों का नज़ारा मन को मोह लेता है।
लोकल ट्रांसपोर्ट: स्थानीय परिवहन की बात करें तो त्र्यंबकेश्वर शहर से मंदिर तक आप ऑटो या प्राइवेट टैक्सी से सरलता से पहुंच सकते हैं। भीड़भाड़ से बचने और दर्शन को सुगम बनाने के लिए मंदिर प्रशासन ने ऑनलाइन पंजीकरण सुविधा भी उपलब्ध कराई है, जिससे आपकी यात्रा और भी सुविधाजनक बन जाती है।
# नीलकंठ महादेव मंदिर, ऋषिकेश
भगवान शिव की दिव्यता को साक्षात महसूस करना हो तो सावन के पावन महीने में नीलकंठ महादेव मंदिर की यात्रा जरूर करें। यह मंदिर न सिर्फ एक धार्मिक स्थल है, बल्कि आध्यात्मिक शांति और शक्ति का अद्भुत संगम है। हिमालय की तलहटी में बसे इस मंदिर का संबंध समुद्र मंथन की उस पौराणिक कथा से है, जब भगवान शिव ने संसार की रक्षा के लिए हलाहल विष का पान किया था और उनका कंठ नीला हो गया था। तभी से वे ‘नीलकंठ’ कहलाए।
श्रावण मास में जब भक्त बेलपत्र, गंगाजल और श्रद्धा से भरा मन लेकर यहां आते हैं, तो मंदिर की घाटियों में गूंजती ‘बोल बम’ की ध्वनि मन को भक्तिभाव से भर देती है। यहां पहुंचते ही एक अलौकिक ऊर्जा का अहसास होता है, जो जीवन के हर तनाव को क्षणभर में दूर कर देती है।
हवाई मार्ग : हवाई मार्ग से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए सबसे निकटतम एयरपोर्ट देहरादून का जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है, जो मंदिर से लगभग 20 किमी दूर स्थित है। एयरपोर्ट से टैक्सी या बस लेकर सीधे मंदिर की ओर बढ़ा जा सकता है।
रेल मार्ग : रेल मार्ग से यात्रा करने वाले यात्रियों के लिए ऋषिकेश रेलवे स्टेशन, जो लगभग 12 किमी दूर है, और हरिद्वार रेलवे स्टेशन, जो करीब 35 किमी की दूरी पर है, दो सुविधाजनक विकल्प हैं। दोनों ही स्टेशनों से टैक्सी या जीप आसानी से मिल जाती हैं।
सड़क मार्ग : सड़क मार्ग से मंदिर पहुंचना भी बेहद सरल है। दिल्ली (240 किमी) और देहरादून (45 किमी) से नीलकंठ महादेव तक की दूरी सड़क मार्ग द्वारा आराम से तय की जा सकती है। रास्ते में आने वाले घुमावदार पहाड़ी रास्ते और हरियाली यात्रा को और भी मनोरम बना देते हैं।
लोकल ट्रांसपोर्ट : स्थानीय परिवहन की बात करें तो ऋषिकेश से मंदिर तक की 12 किमी दूरी तय करने के लिए टैक्सी, जीप या साझा वाहनों की सुविधा मिल जाती है। सावन के दौरान दर्शनार्थियों की भीड़ काफी बढ़ जाती है, इसलिए बेहतर होगा कि आप सुबह जल्दी रवाना हों ताकि दर्शन में कोई रुकावट न आए।
# अधूरा शिव मंदिर, देव बलौदा
श्रद्धा सिर्फ पूर्णता में नहीं, बल्कि अधूरेपन में भी दिव्यता खोज लेती है। यही संदेश देता है छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में स्थित अधूरा शिव मंदिर, जो अपने आप में रहस्य, भक्ति और चमत्कार का अद्भुत संगम है। इस मंदिर की सबसे अनोखी बात यह है कि यह आज भी अधूरा है, लेकिन इसके बावजूद हजारों श्रद्धालु यहां आकर चमत्कारी अनुभव का साक्षात्कार करते हैं।
कहते हैं कि सावन के महीने में जब श्रद्धालु यहाँ भोलेनाथ के दर्शन के लिए आते हैं, तो सिर्फ मंदिर नहीं, बल्कि आस-पास का पूरा इलाका भक्ति में डूब जाता है। यहां लगने वाला विशेष मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि लोगों के जीवन में आशा और ऊर्जा भरने वाला पर्व बन जाता है।
हवाई मार्ग : अगर आप यहां वायु मार्ग से आना चाहते हैं, तो रायपुर का स्वामी विवेकानंद हवाई अड्डा, जो कि मंदिर से करीब 50 किलोमीटर दूर है, आपके लिए सबसे निकटतम एयरपोर्ट होगा। एयरपोर्ट से आपको टैक्सी या बस की सुविधा आसानी से मिल जाएगी।
रेल मार्ग : रेल मार्ग से यात्रा कर रहे यात्रियों के लिए दुर्ग रेलवे स्टेशन, जो कि मंदिर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर है, और रायपुर रेलवे स्टेशन, जो कि करीब 40 किलोमीटर दूर है, सबसे सुविधाजनक विकल्प हैं। दोनों स्टेशनों से टैक्सी या अन्य निजी वाहन की सुविधा उपलब्ध रहती है।
सड़क मार्ग : सड़क मार्ग से यात्रा करना भी बेहद आसान है। आप रायपुर से 40 किलोमीटर या भिलाई से 20 किलोमीटर की दूरी तय कर मंदिर तक पहुंच सकते हैं। साफ-सुथरी सड़कें और हरियाली से भरे रास्ते यात्रा को और भी सुखद बना देते हैं।
लोकल ट्रांसपोर्ट : स्थानीय परिवहन की सुविधा भी यहां अच्छी है। देव बलौदा गांव तक आप ऑटो या प्राइवेट वाहन से आराम से पहुंच सकते हैं। खासकर सावन के पावन महीने में, जब यहां विशेष मेला लगता है, उस समय पार्किंग से लेकर प्रसाद वितरण और जल व्यवस्था तक हर सुविधा का ध्यान रखा जाता है, जिससे श्रद्धालुओं को कोई असुविधा न हो।
अगर आप आध्यात्मिक ऊर्जा को महसूस करना चाहते हैं, तो इस सावन अधूरे शिव मंदिर की यात्रा आपकी आत्मा को अद्भुत संतोष दे सकती है।