वाराणसी : प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल की पुस्तकों का लोकार्पण, वक्ता बोले रविदास की कविता में भूख और जातिगत पीड़ा
वाराणसी। बीएचयू के हिंदी विभाग के रामचंद्र शुक्ल सभागार में कवि-आलोचक प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल की आलोचनात्मक पुस्तक “भक्ति का लोकवृत्त और रविदास की कविताई” का लोकार्पण एवं परिचर्चा आयोजित की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. वशिष्ठ अनूप द्विवेदी ने की।
प्रो. वशिष्ठ अनूप ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि प्रो. श्रीप्रकाश ने रविदास की कविता में भूख और जातिगत पीड़ा को रेखांकित करते हुए भक्ति के व्यापक लोकवृत्त को प्रस्तुत किया है। उन्होंने रविदास को एक ऐसे कवि के रूप में देखा, जिन्होंने सामाजिक असमानता और अन्न की चिंता को अपनी कविता का आधार बनाया।

विशिष्ट वक्ता प्रो. बलिराज पाण्डेय ने पुस्तक की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह प्रो. श्रीप्रकाश के व्यापक अध्ययन को दर्शाती है। उन्होंने रविदास को स्नेह और समानता के मार्ग पर चलने वाला कवि बताया, जो तुलसीदास से जुड़ते हुए भी उनसे भिन्न दृष्टिकोण रखते हैं। उन्होंने सगुण और निर्गुण भक्ति के अंतर को रेखांकित करते हुए कहा कि सगुण ईश्वर शासन का प्रतीक है, जबकि रविदास का निर्गुण दृष्टिकोण समानता पर बल देता है।
पुस्तक के लेखक प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने अपने आत्मवक्तव्य में रविदास को संभव मनुष्यता का साधक कवि बताया। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक को लिखते समय सगुण और निर्गुण भक्ति के लोकवृत्त का विश्लेषण उनकी मुख्य चिंता थी। रविदास की कविता में वर्णनात्मकता के साथ-साथ संवाद धर्मिता को भी रेखांकित करते हुए उन्होंने कवि को ईश्वर के समकक्ष रखने की बात कही।
अलीगढ़ से पधारे प्रो. कमलानंद झा ने पुस्तक को हिंदी भक्ति आलोचना के लिए महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि यह वर्षों की मेहनत का परिणाम है। उन्होंने रविदास को प्रेम और भक्ति की भाषा का कवि बताया, जो बुद्ध की जटिलता के विपरीत सरलता और समानता का पक्ष लेते हैं। प्रो. कमलेश वर्मा ने रविदास की कविता में श्रम और समानता पर जोर देने की सराहना की और प्रो. श्रीप्रकाश के कवि-आलोचक रूप को रेखांकित किया।
डॉ. विंध्याचल यादव ने कहा कि कबीर की तुलना में रविदास को मध्यकाल में कम महत्व मिला, लेकिन इस पुस्तक ने उनके सामाजिक दृष्टिकोण को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है। शोध छात्रा पूजा सिंह ने रविदास को आँच के कवि के रूप में चित्रित करते हुए उनके बेगमपुरा की अवधारणा को आंतरिक उपनिवेश के विरोध से जोड़ा। शोध छात्र पंकज यादव ने रविदास को श्रमबद्धता और समानता के कवि के रूप में स्थापित किया।
कार्यक्रम का शुभारंभ कुलगीत के गायन से हुआ, जिसमें दिव्या शुक्ला, स्मिता पाण्डेय, आकांक्षा मिश्र और आदित्य शामिल थे। स्वागत वक्तव्य डॉ. रविशंकर सोनकर ने दिया, संचालन डॉ. महेंद्र प्रसाद कुशवाहा ने किया, और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. उदयप्रताप पाल ने किया। कार्यक्रम में प्रो. देवेंद्र मिश्र, प्रो. प्रभाकर सिंह, डॉ. किंगसन पटेल, डॉ. प्रभात मिश्र सहित अनेक प्राध्यापक और छात्र-छात्राएँ उपस्थित रहे।