रक्षाबंधन पर सिर्फ एक दिन खुलता है ये रहस्यमयी मंदिर, जानें वंशी नारायण मंदिर से जुड़ी अद्भुत कथा

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भारत अपनी रहस्यमयी और चमत्कारी धार्मिक विरासत के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। देश के कोने-कोने में ऐसे मंदिर मौजूद हैं जिनकी कथाएं और परंपराएं श्रद्धालुओं को चौंका देती हैं। उत्तराखंड की सुरम्य वादियों में स्थित वंशी नारायण मंदिर भी ऐसा ही एक अद्भुत स्थल है। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि पूरे साल बंद रहने वाला यह मंदिर केवल रक्षाबंधन के दिन ही श्रद्धालुओं के लिए खोला जाता है।

भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर अपनी पौराणिकता, दुर्लभ परंपराओं और भव्य प्राकृतिक परिवेश के लिए प्रसिद्ध है। आइए जानें इस रहस्यमयी मंदिर की अनोखी कहानी और धार्मिक महत्व।

कहां स्थित है वंशी नारायण मंदिर?

वंशी नारायण मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। यह मंदिर उरगाम घाटी के पास, कलगोठ गांव के नज़दीक समुद्र तल से ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए 15 किलोमीटर लंबा ट्रैकिंग रूट तय करना होता है जो देवग्राम से शुरू होता है। यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को बर्फीली चोटियों, हरे-भरे जंगलों, हिमालयी वन्यजीवों और प्राचीन गुफाओं का दर्शन होता है। इस मार्ग में मुलखर्क, भागवती देवी मंदिर और छेत्रपाल मंदिर जैसे पवित्र स्थल भी आते हैं, जिससे यह यात्रा आध्यात्मिक और प्राकृतिक दोनों दृष्टियों से समृद्ध बन जाती है।

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मंदिर साल में सिर्फ एक दिन ही क्यों खुलता है?

इस मंदिर को लेकर यह लोकमान्यता है कि भगवान विष्णु की आराधना यहां पूरे वर्ष नारद मुनि करते हैं। लेकिन सावन पूर्णिमा (रक्षाबंधन) के दिन नारद मुनि माता लक्ष्मी के साथ पाताल लोक चले जाते हैं, जिससे उस दिन वे पूजा नहीं कर पाते। तभी स्थानीय ग्रामीणों को इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का अवसर मिलता है, और इसी कारण मंदिर केवल एक दिन के लिए खोला जाता है।

साल भर बंद रहने के बावजूद, रक्षाबंधन के दिन जैसे ही मंदिर के पट खुलते हैं, श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है। लोग दूर-दूर से इस दुर्लभ दर्शन के लिए आते हैं।

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पौराणिक कथा: जब लक्ष्मी जी ने विष्णु को पाताल लोक से मुक्त कराया

इस मंदिर से जुड़ी एक अत्यंत रोचक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु राजा बलि के द्वारपाल बन गए थे और कई दिनों तक माता लक्ष्मी उनसे नहीं मिल पाईं। परेशान होकर लक्ष्मी जी ने नारद मुनि से उपाय पूछा। नारद जी ने सलाह दी कि रक्षाबंधन के दिन बलि को राखी बांधकर विष्णु को मुक्त कराने की याचना करें।

माता लक्ष्मी ने बलि को भाई मानते हुए उसे राखी बांधी और विष्णु जी की वापसी का वरदान मांगा, जो बलि ने सहर्ष स्वीकार किया। ऐसा माना जाता है कि पाताल लोक से मुक्त होकर भगवान विष्णु सबसे पहले इसी वंशी नारायण मंदिर में प्रकट हुए थे। इसी घटना की स्मृति में मंदिर रक्षाबंधन पर खुलता है।

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रक्षाबंधन पर विशेष भोग और फूलों की सजावट

रक्षाबंधन के दिन जब मंदिर के द्वार खुलते हैं, कलगोठ गांव के प्रत्येक घर से भगवान के लिए मक्खन लाया जाता है। इसी मक्खन से विशेष भोग तैयार होता है, जो भगवान वंशी नारायण को अर्पित किया जाता है।

मंदिर में आसपास के दुर्लभ हिमालयी फूलों से भगवान की मूर्ति और पूरा प्रांगण सजाया जाता है। खास बात यह है कि ये फूल साल भर नहीं तोड़े जाते, केवल सावन पूर्णिमा के दिन ही इनका उपयोग पूजा में होता है। यह परंपरा मंदिर की पवित्रता और दिव्यता को दर्शाती है।

कत्यूर शैली का अद्वितीय वास्तुशिल्प

वंशी नारायण मंदिर वास्तुकला की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह मंदिर प्राचीन कत्यूर शैली में निर्मित है। मंदिर का गर्भगृह वर्गाकार है और इसकी ऊंचाई लगभग 10 फीट है। यहां भगवान विष्णु की चतुर्भुज मुद्रा में सुंदर प्रतिमा स्थापित है।

इतिहासकारों का मानना है कि यह मंदिर 8वीं शताब्दी में निर्मित हुआ था और आज भी अपनी मूल संरचना और आध्यात्मिक ऊर्जा को संजोए हुए है।

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एक दिव्य अनुभव

वंशी नारायण मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि भावनात्मक और सांस्कृतिक रूप से भी एक अत्यंत पवित्र स्थल है। रक्षाबंधन के दिन यहां दर्शन करना एक दुर्लभ और दिव्य अनुभव होता है। यह मंदिर भक्ति, परंपरा और प्रकृति का एक अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है, जिसे हर आध्यात्म प्रेमी को एक बार अवश्य देखना चाहिए।



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