वाराणसी में कष्टहरिया मेले का भव्य आयोजन, भगवान द्वारिकाधीश को अर्पित हुआ कटहल का भोग
वाराणसी। कर्क संक्रांति के पावन अवसर पर गुरुवार को वाराणसी के शंकुलधारा तीर्थ पर प्राचीन श्रीद्वारिकाधीश मंदिर में कष्टहरिया मेला (कटहरिया मेला) का आयोजन धूमधाम से किया गया। इस मेले में भगवान द्वारिकाधीश को कटहल का भोग अर्पित किया गया और इसे प्रसाद के रूप में भक्तों में वितरित किया गया। मंदिर परिसर में हरियाली श्रृंगार के साथ भगवान श्रीकृष्ण की भव्य पूजा-अर्चना की गई, जिसने पूरे क्षेत्र को कृष्णमय कर दिया।
मंदिर के महंत स्वामी रामदासाचार्य ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने शंकु नामक राक्षस का वध कर भक्तों को कष्टों से मुक्ति दिलाई थी। इसी उपलक्ष्य में वर्षों से कष्टहरिया मेला और भगवान का हरियाली श्रृंगार आयोजित किया जाता है। उन्होंने बताया कि यह मंदिर हजारों वर्ष पुराना है, जहां बाबा विश्वनाथ के अनुनय-विनय पर भगवान द्वारिकाधीश विराजमान हुए और राक्षस का संहार कर इस मंदिर की स्थापना की थी।
मेले की शुरुआत प्रातःकाल भगवान द्वारिकाधीश को गंगा जल, दूध आदि से स्नान कराने के बाद हुई। इसके पश्चात भगवान को नवीन वस्त्र धारण कराए गए। मंदिर प्रांगण को गुलाब, चमेली, बेला आदि फूलों और पत्तियों से सजाया गया। भगवान को कटहल का कोआ और खोवा से भोग अर्पित किया गया। जैसे ही मंदिर का पट खुला, पूरा परिसर भगवान द्वारिकाधीश के जयकारों से गूंज उठा। भव्य आरती के बाद भक्तों ने दर्शन किए और प्रसाद ग्रहण किया।
मेले में विभिन्न अस्थायी दुकानों पर नानखटाई, खिलौने, कटहल का कोआ, जलेबी आदि की बिक्री हुई, जिसने मेले को और भी आकर्षक बनाया। मंदिर के सामने स्थित पौराणिक शंकुलधारा पोखरा भी इस आयोजन का विशेष आकर्षण रहा। मान्यता है कि इस पोखरे में स्नान करने से चर्म रोगों सहित सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। मेले में दंगल का आयोजन भी किया गया, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु और दर्शक पहुंचे।
कष्टहरिया मेला न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह वाराणसी की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को भी दर्शाता है। यह आयोजन भक्तों के लिए भगवान द्वारिकाधीश के दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करने का एक अनुपम अवसर प्रदान करता है।
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