इस जंगली मशरूम के सभी दिवाने, इन दिनों खूब हो रही भूईफोड़ (जंगली मशरूम) की डिमांड

0

जिला ब्यूरो, विवेक कुमार सिंह

बेतिया /वाल्मीकिनगर।  वीटीआर में बरसात के मौसम पाई जाने वाली भूईफोड़ (जंगली मशरूम) की डिमांड इन दिनों खूब हो रही है। इसका वेजिटेरियन का स्वाद नॉनवेज से शानदार है। पौष्टिकता व स्वाद के लिए अलग पहचान रखने वाले इस जंगली मशरूम को स्थानीय भाषा में भुईफोड़ बोला जाता है।

साल में एक ही बार मिलता है भुईफोड़

यह जंगली मशरूम साल में एक ही सीजन पर शौकीनों को मिल पाता है। कड़ी धूप के बाद मानसून की बौछार पड़ते ही दीमक के टीलों के आस-पास जंगल में नजर आने वाली इस सब्जी का स्वाद चखना आम व खास लोगों के लिए क्रेज की बात है। कृषि वैज्ञानिक विनय कुमार सिह इसे स्वास्थ्य के लिए रामबाण मानते हैं।मिट्टी को चीरकर निकलने वाली जंगली मशरूम में कई ऐसे जरूरी पोषक तत्व मौजूद होते हैं। साथ ही यह फाइबर का भी एक अच्छा माध्यम है। कई बीमारियों में मशरूम का इस्तेमाल दवा के तौर पर किया जाता है। इसमें कैलोरी ज्यादा नहीं होती है। मशरूम में कई महत्वपूर्ण खनीज और विटामिन पाए जाते हैं।

इनमें विटामिन बी व डी, पोटेशियम, कॉपर, आयरन, सेलेनियम की पर्याप्त मात्रा होती है। इसके अलावा मशरूम में चोलाइन नाम का एक खास पोषक तत्व पाया जाता है, जो मांसपेशियों को क्रियाशील रखती है। अच्छी बारिश के बाद जंगल में भारी मात्रा में पाया जाने वाला मशरूम अब बाजारों में बिकने लगा है। पौष्टिकता व स्वाद के लिए अलग पहचान रखने वाले इस मशरूम की जबरदस्त मांग है। प्रति किलो तीन से चार सौ रुपए के भाव से यह बिक रही है।

वैज्ञानिक भाषा में फ्लोरियन नाम से जाना जाता है। चारों ओर से जंगलों से घिरे होने के कारण वाल्मीकिनगर में सबसे अधिक मिलती है।

आसान नहीं है जंगल से मशरूम इक्ट्ठा करना

ग्रामीण बताते है कि मशरूम को इकट्ठा करने के लिए सुबह उठकर जंगल जाना पड़ता है, तब जाकर बड़ी मशक्कत से मशरूम मिलता है और जंगल जाते वक्त कई तरह की मुश्किलों का सामना भी करना पड़ता है और जान का खतरा भी बना रहता है। घने जंगलों में जंगली जानवरों का भी खतरा बना रहता है। जंगली जानवरों के हमले से घायल होने की घटना भी सामने आती रहती है।जहां एक ओर मशरूम ग्रामीणों के लिए आय का एक अच्छा स्रोत है तो वहीं जान का खतरा भी उन्हें उतना ही रहता है।

Leave A Reply

Your email address will not be published.