Bastar Dussehra 2025: 600 साल पुरानी ‘जोगी बिठाई’ रस्म सम्पन्न, इटली से पहुंचे पर्यटक बने साक्षी, देखें तस्वीरें
हाइलाइट्स
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600 साल पुरानी रस्म सम्पन्न
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इटली से आए पर्यटक बने साक्षी
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नौ दिनों तक जोगी की तपस्या
Bastar Dussehra 2025: विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा (Bastar Dussehra Festival) की 600 साल पुरानी परंपरा ‘जोगी बिठाई’ का आयोजन इस वर्ष भी पूरे विधि-विधान और श्रद्धा के साथ सम्पन्न हुआ। मंगलवार को सीरासार भवन में आयोजित इस ऐतिहासिक रस्म में स्थानीय जनता के साथ देश-विदेश से आए मेहमान भी शामिल हुए। इस बार भी आमाबाल गांव के रघुनाथ नाग ने जोगी की भूमिका निभाई, जो पिछले पाँच वर्षों से यह दायित्व निभा रहे हैं।

नौ दिनों तक गड्ढे में तपस्या
मान्यता है कि माता मावली की विशेष पूजा-अर्चना के बाद जोगी सीरासार चौक पहुंचते हैं और गहरे गड्ढे में बैठकर नौ दिनों तक तपस्या (Spiritual Meditation) करते हैं। इस अवधि में वे भोजन और आराम से दूर रहकर साधना करते हैं ताकि माता मावली प्रसन्न हों और दशहरा महापर्व निर्विघ्न सम्पन्न हो सके।


विधि-विधान से हुई शुरुआत
रस्म की शुरुआत मावली मंदिर (Mawli Temple) में दीप प्रज्ज्वलन और तलवार की पूजा के साथ हुई। इसके बाद तलवार को लेकर जोगी सीरासार भवन पहुंचे और वहां गड्ढे में बैठकर तपस्या का संकल्प लिया। बस्तर राजपरिवार, पुजारी, मांझी-चालकी और दशहरा समिति के सदस्य इस मौके पर मौजूद रहे।


विदेशी पर्यटकों का आकर्षण
इस अनोखी परंपरा को देखने इटली से पर्यटक भी पहुंचे। इटली के डॉक्यूमेंट्रिस्ट और फोटोग्राफर मटिया (Italian Photographer Mattia) ने कहा कि बस्तर का दशहरा अद्वितीय है और यहां की संस्कृति उन्हें बेहद प्रभावित करती है। उन्होंने लोगों की मेहमाननवाजी की सराहना करते हुए कहा- “छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया, I love Bastar.”


स्थानीय जनता की आस्था
इस अवसर पर स्थानीय लोगों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। बस्तरवासियों का विश्वास है कि जोगी की तपस्या से माता मावली (Mata Mawli Worship) प्रसन्न होती हैं और पूरा पर्व बिना किसी विघ्न के सम्पन्न होता है। यही कारण है कि हर साल हजारों लोग इस रस्म के साक्षी बनने आते हैं।
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सांस्कृतिक और पर्यटन महत्व
बस्तर दशहरा केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक विरासत (Cultural Heritage) और पर्यटन (Tourism in Bastar) का भी केंद्र है। इस पर्व में अनोखी रस्में और परंपराएं देखने को मिलती हैं, जो दुनियाभर के शोधकर्ताओं और पर्यटकों को आकर्षित करती हैं।
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