खैरागढ़-छुईखदान में सीमेंट फैक्ट्री के खिलाफ उबाल: पानी-जमीन बचाने के लिए किसानों का महाआंदोलन, 55 गांव हुए एकजुट

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Khairagarh Mining Protest: खैरागढ़–छुईखदान के संडी क्षेत्र में प्रस्तावित चूना पत्थर खनन और श्री सीमेंट फैक्ट्री की योजना ने पूरे इलाके में बेचैनी पैदा कर दी है। जिन योजनाओं को विकास का नाम दिया जा रहा है, ग्रामीण उन्हें अपने भविष्य के लिए खतरा मान रहे हैं। किसानों का कहना है कि उनकी खेती पूरी तरह भू-जल, तालाबों और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है। खनन शुरू होते ही सबसे पहला असर पानी पर पड़ेगा, कुएं और हैंडपंप सूखेंगे, खेतों में नमी खत्म होगी और धीरे-धीरे जमीन बंजर हो जाएगी।

किसानों का तर्क है कि आसपास के कई इलाकों में खनन के बाद यही हालात बने हैं। खेती खत्म हुई, पानी गायब हुआ और लोगों को गांव छोड़ने तक की मजबूरी आई। इसी अनुभव ने संडी क्षेत्र के किसानों को पहले से सतर्क कर दिया। जब पिछले कुछ महीनों में कंपनी और प्रशासन के लोग सर्वे के लिए गांवों में पहुंचे, तो आशंकाएं और गहरी हो गईं।

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सहमति पर सवाल, भरोसे की कमी

ग्रामीणों का आरोप है कि उनसे साफ और खुली सहमति नहीं ली गई। कहीं मुआवजे और नौकरी का सपना दिखाया गया, तो कहीं दबाव की बातें सामने आईं। किसानों को लगा कि अगर अभी आवाज नहीं उठाई गई, तो जमीन चुपचाप हाथ से निकल जाएगी। यहीं से गांव-गांव बैठकों का सिलसिला शुरू हुआ, जो देखते-देखते पूरे क्षेत्र की सामूहिक आवाज बन गया।

55 गांवों की महापंचायत, आंदोलन को धार

पंडरिया-बिचारपुर भाठा में हुई किसान महापंचायत में 55 गांवों से हजारों किसान जुटे। बड़ी संख्या में महिलाओं की मौजूदगी ने साफ कर दिया कि यह लड़ाई केवल कुछ लोगों की नहीं, बल्कि पूरे समाज की है। महापंचायत में आंदोलन को संगठित रूप देने के लिएकिसान अधिकार संघर्ष समिति का गठन किया गया।

जमीन-पानी पर खतरा, संडी में खनन के खिलाफ किसान आंदोलन, 55 गांव एक मंच पर, कंपनी समर्थकों की गांवों में एंट्री बंद

गांवों में “नो-एंट्री”

महापंचायत में साफ शब्दों में कहा गया कि संघर्ष तब तक जारी रहेगा, जब तक खनन परियोजना पूरी तरह रद्द नहीं होती। एक सख्त फैसला भी लिया गया—खनन कंपनी के कर्मचारी, परियोजना समर्थक अधिकारी और नेता गांवों में प्रवेश नहीं करेंगे। किसानों का आरोप है कि ऐसे लोग भ्रम फैलाकर आंदोलन को कमजोर करने की कोशिश करते हैं। पंडरिया भाठा को आंदोलन का स्थायी केंद्र बनाया गया है।

हर महीने पंचायत, सामाजिक-सांस्कृतिक ताकत

तय किया गया है कि परियोजना रद्द होने तक हर महीने किसान पंचायत होगी। आंदोलन को सामाजिक और सांस्कृतिक ताकत देने के लिए दक्षिण मुखी हनुमान मंदिर निर्माण का निर्णय भी लिया गया, ताकि गांवों की एकता और मजबूत हो।

महापंचायत में यह संदेश भी दिया गया कि आंदोलन केवल विरोध तक सीमित नहीं है। रक्तदान शिविर लगाकर जरूरतमंद मरीजों के लिए रक्तदान किया गया। किसानों का कहना है कि जमीन बचाने की लड़ाई के साथ समाज के प्रति जिम्मेदारी निभाना भी उतना ही जरूरी है।

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