CG Teacher Shortage: समायोजन के बाद भी सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी, प्रदेश में 22,464 पद खाली, पढ़ाई पर असर

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हाइलाइट्स 

  1. प्रदेश में 22,464 शिक्षक पद रिक्त
  2. प्राइमरी-मिडिल-हायर में भारी कमी
  3. स्थायी भर्ती व प्रशिक्षण जरूरी

CG Teacher Shortage: छत्तीसगढ़ में सरकारी स्कूलों का शैक्षणिक ढांचा युक्तियुक्तकरण (rationalisation) के बावजूद चुनौतीपूर्ण बना हुआ है। शिक्षा विभाग के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार प्रदेश भर में कुल 22,464 शिक्षक पद रिक्त हैं, जिनमें प्राइमरी के 7,957, मिडिल के 7,734 और हाई/हायर सेकेंडरी के 6,773 पद शामिल हैं। यह कमी न केवल कक्षाओं के समय-सारिणी और पढ़ाई पर असर डाल रही है बल्कि दूरदराज इलाकों के विद्यार्थियों की सीखने की गुणवत्ता (learning outcomes) को भी प्रभावित कर रही है।

बिलासपुर जिले में स्थिति विशेष तौर पर चिंताजनक है जहां प्राइमरी में 747, मिडिल में 523 और हाई/हायर सेकेंडरी में 272 पद रिक्त बताए गए हैं। जिले के 431 स्कूलों के 748 शिक्षक युक्तियुक्तकरण से प्रभावित हुए हैं और कई स्कूल सीमित स्टाफ के भरोसे चल रहे हैं।

CG Teacher Shortage: समायोजन के बाद भी सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी, प्रदेश में 22,464 पद खाली, पढ़ाई पर असर
CG Teacher Shortage

युक्तियुक्तकरण के बाद जिलेवार रिक्त पदों की तस्वीर

जिला प्राइमरी मिडिल हाई/हायर सेकेंडरी
बिलासपुर 747 523 272
रायपुर 27 538 195
बलौदाबाजार 713 413 189
बेमेतरा 1078 806 831
खैरागढ़ 774 316 237
बलरामपुर 679 177 282
जगदलपुर 480 196 180
बीजापुर 467 50 187
सुकमा 463 21 155

क्षितिज पर समस्या का कारण और जमीनी तस्वीर

यही वह संकट है जिसे युक्तियुक्तकरण से पूरा नहीं किया जा सका। युक्तियुक्तकरण के दौरान कुछ स्कूलों में पदों का समेकन और कुछ पदों का समायोजन हुआ, पर भर्ती प्रक्रिया और स्थायी भर्तियों की कमी ने रिक्तियों को कायम रखा।

मैदान का रुख साफ है: महमंद, मोपका और धनिया हायर सेकेंडरी जैसे स्कूलों में मात्र 5-5 शिक्षक हैं जबकि कम-से-कम 10 की जरूरत है। खैरा डगनिया मिडिल स्कूल में केवल 2 शिक्षक तैनात हैं जबकि आवश्यकता 4 की है। इससे पता चलता है कि शिक्षक अनुपात (student-teacher ratio) बिगड़ रहा है और पढ़ाई व अधिगम गतिविधियों (co-curricular activities) पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

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छत्तीसगढ़ सरकार और शिक्षा विभाग की दलीलें

शिक्षा मंत्री वादे करते हैं कि युक्तियुक्तकरण से व्यवस्थाएं पहले से बेहतर हुई हैं और भर्ती प्राथमिकता (priority recruitment) के आधार पर की जाएगी। शिक्षा विभाग का कहना है कि जहां जरूरत थी, वहां पोस्टिंग की गई है और रिक्त पदों की भरपाई के लिए आगे की योजना बनी है। हालांकि, विभाग ने स्वीकार भी किया है कि जब तक स्थायी भर्तियां नहीं होंगी, तब तक यह संकट बना रहेगा। ऐसे में सरकारी दावों और जमीन की हकीकत के बीच विशेष तालमेल बनाए जाने की आवश्यकता है।

बच्चों की पढ़ाई पर वास्तविक असर

रिक्तियों की वजह से समय पर नियमित कक्षाएं नहीं हो पा रही हैं, परीक्षा तैयारियों में व्यवधान आ रहा है और अतिरिक्त शैक्षिक गतिविधियां जैसे प्रश्नोत्तर सत्र, लाइब्रेरी समय और प्रायोगिक क्लासेज प्रभावित हो रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में पठन-पाठन का माहौल कमजोर होने से छात्र अक्सर पढ़ाई से विरक्त होते हैं और दरअसल यह दीर्घकालिक (long-term) शिक्षा परिणामों पर नकारात्मक असर डाल सकता है। अभिभावक और शिक्षक दोनों ही मांग कर रहे हैं कि भर्ती प्रक्रिया पारदर्शी और त्वरित हो।

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कलेक्टर ने रिटायर्ड शिक्षकों से की अपील

बिलासपुर जिले में शिक्षक और छात्रों का अनुपात (Teacher-Student Ratio) 1:27 हो जाने से शिक्षा व्यवस्था पर असर पड़ रहा है। इस स्थिति को सुधारने के लिए कलेक्टर संजय अग्रवाल ने एक सराहनीय पहल की है। उन्होंने जिले के सभी सेवानिवृत्त प्राचार्य, व्याख्याता, शिक्षक और सहायक शिक्षकों से अपील की है कि वे अपने अनुभव और समय का उपयोग बच्चों की शिक्षा में करें।

कलेक्टर ने कहा कि कई शिक्षक सेवानिवृत्ति के बाद भी समाज के प्रति जिम्मेदारी निभाने की इच्छा रखते हैं, ऐसे शिक्षक अपने गांव या वार्ड के प्राथमिक, पूर्व माध्यमिक, हाईस्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूलों में स्वेच्छा से बच्चों को पढ़ा सकते हैं। यह पहल निशुल्क और स्वैच्छिक होगी, जिसका उद्देश्य शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाना और बच्चों के उज्जवल भविष्य को दिशा देना है।

प्रशासनिक रास्ता और समयरेखा

समस्या को सुलझाने के लिए एक व्यवस्थित, चरणबद्ध योजना जरूरी है – 

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इन चरणों का अनुसरण कर शिक्षा विभाग रिक्तियों को नियंत्रित कर सकता है और पढ़ाई पर हो रहे प्रतिकूल असर को घटा सकता है।

स्थायी भर्ती, प्रशिक्षण और डिजिटल सहायता की भूमिका

विशेषज्ञ और शिक्षाविद सुझाते हैं कि केवल भर्ती से काम नहीं चलेगा, नई नियुक्तियों के बाद नियमित स्किल-अप (skill-up) प्रशिक्षण और ऑनलाइन शिक्षण समर्थन (digital learning tools) की व्यवस्था जरूरी है ताकि अक्षम्यता कम हो और एक शिक्षक कई विषयों में सक्षम बने। इसके अलावा, दूरदराज क्षेत्रों में डिजिटल क्लासरूम और संबद्ध ट्यूटरिंग सिस्टम अस्थायी रिक्तियों के दौरान भी पढ़ाई निरंतर बनाए रख सकते हैं।

अभ्यर्थियों और स्थानीय समुदाय के लिए सलाह

बीएड/डीएलएड और अन्य पात्र अभ्यर्थियों को सलाह है कि वे भर्ती विज्ञापन और तिथियों पर नज़र रखें, तैयारियों में गणित और अंग्रेजी जैसे चुनौतीपूर्ण विषयों पर विशेष ध्यान दें और स्थानीय गांव-स्तर पर होने वाली शैक्षिक बैठकों में सहभागिता बढ़ाएँ। समुदायों को भी स्कूलों से जुड़े रहने, अभिभावक-शिक्षक बैठकें आयोजित करने और स्थानीय प्रशासन पर स्थायी नियुक्तियों का दबाव बनाये रखने की भूमिका निभानी चाहिए।

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FAQs..

 

1. छत्तीसगढ़ में शिक्षक पद खाली रहने से आम लोगों पर क्या असर पड़ता है?

जवाब – शिक्षकों की कमी का सीधा असर बच्चों की शिक्षा गुणवत्ता पर पड़ता है। सरकारी स्कूलों में नियमित कक्षाएं बाधित होती हैं, परीक्षा तैयारी कमजोर होती है और ग्रामीण छात्रों की सीखने की क्षमता (learning outcome) घट जाती है। इससे अभिभावकों को भी निजी स्कूलों पर निर्भर होना पड़ता है, जिससे आर्थिक बोझ बढ़ता है।

2. क्या सरकार इन रिक्त पदों पर भर्ती करने जा रही है?

जवाब – शिक्षा विभाग के अनुसार, रिक्त पदों की भर्ती को “प्राथमिकता (priority recruitment)” पर रखा गया है। विभाग ने योजना बनाई है कि पहले संविदा भर्ती (contract recruitment) से स्कूलों में कक्षाएं सुचारु की जाएंगी और फिर स्थायी नियुक्ति (permanent recruitment) की जाएगी। इसके अलावा नए साल में राज्य में 5000 शिक्षकों के भर्ती का भी प्रावधान है।

3. क्या रिटायर्ड शिक्षक स्वेच्छा से पढ़ाने के लिए आवेदन कर सकते हैं?

जवाब – हां, बिलासपुर कलेक्टर संजय अग्रवाल ने सभी रिटायर्ड प्राचार्यों, व्याख्याताओं और शिक्षकों से अपील की है कि वे अपने गांव या वार्ड के स्कूलों में स्वेच्छा से निशुल्क अध्यापन (voluntary teaching) करें। इच्छुक व्यक्ति जिला शिक्षा अधिकारी या संबंधित स्कूल में संपर्क कर आवेदन दे सकते हैं।

4. छात्रों और अभिभावकों को इस स्थिति में क्या कदम उठाने चाहिए?

जवाब –

  • अभिभावकों को अपने बच्चों के स्कूलों में नियमित उपस्थिति और पढ़ाई की स्थिति पर नजर रखनी चाहिए।
  • School Management Committees (SMC) में सक्रिय भूमिका निभाएं और शिक्षकों की कमी की जानकारी स्थानीय प्रशासन को दें।
  • साथ ही, छात्रों को ऑनलाइन लर्निंग टूल्स (online learning apps) और डिजिटल सामग्री के माध्यम से पढ़ाई जारी रखनी चाहिए।
5. क्या यह समस्या सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों तक सीमित है या शहरी स्कूल भी प्रभावित हैं?

जवाब – यह समस्या पूरे प्रदेश में फैली हुई है, लेकिन इसका प्रभाव ग्रामीण और दूरस्थ इलाकों में अधिक है। शहरी स्कूलों में शिक्षकों की कमी आंशिक रूप से “adjustment” से पूरी हो जाती है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में एक शिक्षक को कई विषय पढ़ाने पड़ते हैं, जिससे शिक्षा गुणवत्ता प्रभावित होती है। 

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