टूटकर भी ना टूटे…कैसे कटे पैरों से सदानंदन मास्टर ने नापी संसद की डगर?

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शारीरिक विकलांगता उनके हौसले को नहीं तोड़ पाई. कृत्रिम पैर लगवाकर उन्होंने एक नई शुरुआत की. 1999 में उन्होंने त्रिशूर ज़िले के एक माध्यमिक विद्यालय में सामाजिक विज्ञान के शिक्षक के रूप में नौकरी की.

Sadanandan Master: कभी सोचा है, कोई इंसान अपने दोनों पैर गंवाने के बाद भी ज़िंदगी की दौड़ में इतनी तेज़ी से भागे कि सीधा संसद तक पहुंच जाए? ये कोई फ़िल्मी कहानी नहीं, बल्कि केरल के सदानंदन मास्टर की सच्ची और दिल छू लेने वाली दास्तान है, जिन्हें हाल ही में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राज्यसभा के लिए मनोनीत किया है.

एक काला दिन जिसने बदल दी ज़िंदगी

बात 25 जनवरी, 1994 की है. सदानंदन मास्टर अपनी बहन की शादी का न्योता देकर घर लौट रहे थे. घर में जश्न का माहौल था, क्योंकि कुछ दिनों बाद ही उनकी बहन की सगाई थी. लेकिन किसे पता था कि ये ख़ुशियां मातम में बदलने वाली हैं. जैसे ही वो कार से उतरे, CPM कार्यकर्ताओं के एक गुट ने उन पर बेरहमी से हमला कर दिया. हमलावरों ने उन्हें घसीटा और फिर उनके दोनों पैर काट दिए. इतना ही नहीं, उन्होंने क्रूरता की सारी हदें पार करते हुए उनके कटे हुए पैरों को सड़क पर रगड़ा ताकि भविष्य में उनकी सर्जरी न हो सके. उस वक़्त सदानंदन मास्टर की उम्र महज़ 30 साल थी.

राजनीतिक विरोध का दर्दनाक नतीजा

आपका सवाल होगा कि ऐसा क्यों हुआ? दरअसल, सदानंदन मास्टर का परिवार कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ा था, लेकिन कुछ नेताओं से मतभेद के बाद उन्होंने RSS की विचारधारा अपना ली. उन्होंने CPM का गढ़ माने जाने वाले केरल के मट्टानूर में एक RSS कार्यालय स्थापित कर दिया, जिससे CPM नेता भड़क गए और इसी का नतीजा था ये जानलेवा हमला.

हार नहीं मानी, बल्कि बन गए प्रेरणा

शारीरिक विकलांगता उनके हौसले को नहीं तोड़ पाई. कृत्रिम पैर लगवाकर उन्होंने एक नई शुरुआत की. 1999 में उन्होंने त्रिशूर ज़िले के एक माध्यमिक विद्यालय में सामाजिक विज्ञान के शिक्षक के रूप में नौकरी की. अगले 25 सालों तक उन्होंने पूरी लगन से बच्चों को पढ़ाया और 2020 में रिटायर हुए.

शिक्षक के तौर पर सेवा देने के बाद भी उनका सामाजिक और राजनीतिक कार्यों के प्रति जुनून कम नहीं हुआ. वह और अधिक सक्रिय हो गए. बीजेपी ने उन्हें 2016 और फिर 2021 में विधानसभा चुनाव का उम्मीदवार भी बनाया था.

संसद तक का सफ़र

और अब, जुलाई 2025 में राष्ट्रपति ने उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत कर एक नया सम्मान दिया है. इस पर सदानंदन मास्टर ने कहा कि यह उनके लिए गर्व का क्षण है और पार्टी ने उन पर जो विश्वास दिखाया है, उसके लिए वे आभारी हैं. उन्होंने कहा कि उनका कर्तव्य है कि वे ‘विकसित केरल और विकसित भारत’ के पार्टी के नारे को बुलंद करें और कन्नूर ज़िले के पार्टी कार्यकर्ताओं का आत्मविश्वास बढ़ाएं, जिन्होंने पार्टी के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है.

पीएम मोदी ने भी सदानंदन मास्टर की सराहना करते हुए कहा कि उनका जीवन साहस और अन्याय के आगे न झुकने की भावना का प्रतीक है. पीएम मोदी ने कहा कि हिंसा और धमकियां राष्ट्र के विकास के प्रति उनके जज़्बे को रोक नहीं पाईं. एक शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी उनके प्रयास सराहनीय हैं और वे युवा सशक्तीकरण में गहरी आस्था रखते हैं.

सदानंदन मास्टर की कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएं, अगर हौसला बुलंद हो तो हर बाधा को पार किया जा सकता है. यह सिर्फ़ एक व्यक्ति की कहानी नहीं, बल्कि अदम्य इच्छाशक्ति और संघर्ष की एक मिसाल है.

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