किसान राजेंद्र ने छेड़ी पर्यावरण संरक्षण की अनोखी मुहिम, आज पराली से सालाना कमा रहे 2 करोड़ रुपए
सिरसा | हरियाणा सरकार की प्रोत्साहन नीति की बदौलत आज सूबे के किसान परम्परागत खेती का मोह त्याग कर ऑर्गेनिक और बागवानी खेती से जहां लाखों रूपए सालाना आमदनी कर रहे हैं तो वहीं साथ ही प्रगतिशील किसान के रूप में खुद की नई पहचान बना रहे हैं. आज ये जागरूक किसान पशुपालन, मत्स्य पालन और पराली प्रबंधन जैसे व्यवसाय से भी अतिरिक्त कमाई कर रहे हैं.
सालाना करोड़ों रुपए टर्न ओवर
सिरसा जिले के गांव खारिया निवासी प्रगतिशील किसान राजेन्द्र ने भी कुछ ऐसा ही उदाहरण पेश किया है. मेडिकल लाइन छोड़ पर्यावरण संरक्षण और वेस्ट से वेल्थ जैसी मुहिम शुरू करते हुए उन्होंने 2 साल पहले पराली से ईंधन बनाने का व्यवसाय शुरू किया था. आज वे सालाना 20 हजार क्विंटल पराली प्रोसेस कर ईंधन बना रहे हैं. आज उनका सालाना टर्नओवर 2 करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है. आसपास के क्षेत्र के किसान उनके यहां पराली बेचकर अतिरिक्त आमदनी कर रहे हैं. 1 दर्जन लोगों को उनके यहां रोजगार मिला हुआ है. इससे पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिल रहा है और आमदनी भी हो रही है.
राजेन्द्र ने बताया कि 38 साल मेडिकल लाइन में बिताए हैं. लोगों को पराली जलाने से उत्पन्न होने वाले धुएं से परेशान होते देखा, तो सोचने पर बाध्य कर दिया कि भले ही इस समय पर दवाईयों की बिक्री में इजाफा हो रहा है, लेकिन लोगों को खुली हवा में सांस लेना दूभर हो गया है. इससे मन को संतुष्टि नहीं मिली तो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में यह कदम उठाया.
NCR के कई शहरों में उत्पाद की सप्लाई
उन्होंने बताया कि प्रत्येक वर्ष हजारो एकड़ में पराली जलाने से जहरीला धुआं फैलता है. मैंने इस चुनौती को अवसर मानते हुए रिसर्च कर पराली से ईंधन बनाने की तकनीक विकसित की. अब किसान पराली जलाने के बजाय बेच कर अतिरिक्त कमाई कर रहे हैं. उन्होंने किसानों से आग्रह करते हुए कहा कि सभी किसान फसल अवशेष को ईंधन के रूप में इस्तेमाल करें तो यह प्रदूषण का कारण नहीं, कमाई का जरिया बनेगी. उनके फसल अवशेष प्रबंधन के इस मॉडल को प्रशासन और कृषि विभाग भी जमकर सराहना कर रहा है और अन्य किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बता रहा है.
किसान राजेन्द्र ने बताया कि दो साल पहले खेत में एक एकड़ 4 कनाल में पराली से ईंधन योग्य गुटका बनाने का प्लांट लगाया था. अब हर साल 20 हजार क्विंटल पराली प्रोसेस कर ईंधन तैयार किया जाता है. यह ईंधन दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, मेरठ, पानीपत, सोनीपत, घरौंडा के कई औद्योगिक इकाइयों में कोयले की जगह इस्तेमाल हो रहा है.