MP Ajjaks: अजाक्स प्रांतीय सम्मेलन में JN कंसोटिया ने कहा- सभी वर्गों का समान प्रतिनिधित्व और प्रमोशन में आरक्षण नियम का पालन हो
Madhya Pradesh Ajjaks: मध्यप्रदेश अनुसूचित जाति अनुसूचित जन जाति अधिकारी कर्मचारी संघ का रविवार, 23 नवंबर 2025 को भोपाल के अंबेडकर पार्क में प्रांतीय सम्मेलन हुआ।
इस वार्षिक प्रांतीय सम्मेलन में सरकारी विभागों से मूलभूत समस्याओं को खत्म कर आरक्षित वर्ग को एकजुट करने का ऐलान किया गया। सम्मेलन में सरकारी विभागों में अधिकारी और कर्मचारियों के प्रमोशन में आरक्षण का मुद्दा भी उठा। जिसमें IAS संतोष वर्मा को अजाक्स का प्रदेश अध्यक्ष घोषित किया गया।
सरकारी विभागों में आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधत्व कम
अजाक्स के तत्कालीन प्रांतीय अध्यक्ष जेएन कंसोटिया ने कहा कि सरकारी विभागों में अब भी आरक्षित वर्ग के अधिकारी और कर्मचारियों का प्रतिनिधत्व पर्याप्त नहीं है। जिसे सभी वर्गों के समान किया जाना जरूरी है। संविधान में दिए आरक्षण के नियमों का भी पालन होना चाहिए। हाईकोर्ट में प्रमोशन में आरक्षण का मामला चल रहा है। जहां हम अपना पक्ष पूरी मजबूती के साथ रखेंगे।
विभागों में आरक्षित वर्गों को आगे बढ़ाने पर काम करेंगे
अजाक्स के नवागत प्रांतीय अध्यक्ष संतोष वर्मा ने कहा कि अजाक्स का मूल उद्देश्य आरक्षित वर्ग की मूलभूत समस्याओं का समाधान करना है। प्रमोशन में आरक्षण, बैकलॉग पदों पर भर्ती करने, न्यायिक सेवा में आरक्षण, सफाई कर्मचारी समेत समग्र विकास के लिए प्रयास करते रहेंगे। नई जिम्मेदारी के साथ आरक्षित वर्गों का आगे बढ़ाने के लिए सरकार से मांग करेंगे।
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अपने नाम के साथ सभी अंबेडकर लगाए, संविधान पढ़ें
राज्यसभा सांसद उमेश नाथ ने कहा- मैं आप लोगों को संकल्प दिलाना चाहूंगा कि हम अपने नाम के साथ अंबेडकर लगाने की कोशिश करेंगे। जिस तरह संत रविदास के परिवार जन्म लेते है तो रैदासजी लगाते है, वाल्मीकि के परिवार में जन्म लिया तो वाल्मीकि लगाते है, गौतम ऋषि के परिवार में जन्म लिया है तो गौतम लगाते है, अरिष्ठ नेमी के परिवार में जन्म लिया है तो अरिष्ठ नेमी लगाते है। जिस तरह लोग गीता, रामायण पढ़ते है, उसी तरह संविधान को पढ़ने की कोशिश करें।
बादल छंटे, लेकिन कहीं-कहीं मौसम गड़बड़ है
वरिष्ठ नारायण सिंह केसरी ने कहा कि आज की सरकार किसी जाति, वर्ग की नहीं है, सबकी सरकार है। बादल छंटे जरूरी है, लेकिन कहीं—कहीं मौसम गड़बड़ है। मौसम को ठीक करना है। सावधान हो जा​ईए। पूरे देश में संदेश पहुंचाओं, भविष्य बनाए रखने संगठित हो, चाहे महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली हो। हमारे वर्ग को जागृत करना जरूरी होगा। आज मोदी है तो सब कुछ है और मोदी से जो करा लेगा, वो अकलदार होगा।
सवाल : जानें क्यों लगी थी प्रमोशन पर रोक ?
जवाब: आरक्षण का प्रावधान: तत्कालीन राज्य सरकार ने साल 2002 में पदोन्नति के नियम बनाकर प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था लागू की थी।
परिणाम: इस प्रावधान से आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों को पदोन्नति मिलती रही, जबकि अनारक्षित वर्ग के कर्मचारी पीछे छूट गए।
कोर्ट में चुनौती: असंतुलन के विवाद ने तूल पकड़ा तो कर्मचारी अदालत पहुंचे। उन्होंने प्रमोशन में आरक्षण को खत्म करने की मांग की।
कर्मचारियों का तर्क: कोर्ट में यह तर्क दिया गया कि पदोन्नति का लाभ केवल एक ही बार दिया जाना चाहिए (न कि हर स्तर पर)।
हाईकोर्ट का निर्णय: इन तर्कों पर एमपी हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) नियम 2002 को खारिज किया।
सुप्रीम कोर्ट में अपील: राज्य सरकार ने इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
वर्तमान स्थिति: शीर्ष कोर्ट ने केस में यथास्थिति बनाने का आदेश दिया। 2016 से अब तक प्रदेश में पदोन्नति पर रोक लगी हुई है।
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सवाल : क्या है प्रमोशन की नई पॉलिसी ?
जवाब: पदों का वर्गीकरण: उपलब्ध रिक्त पदों को अनुसूचित जाति (SC – 16%), अनुसूचित जनजाति (ST – 20%), और अनारक्षित वर्ग के हिस्सों में आनुपातिक रूप से विभाजित किया जाएगा।
भर्ती प्राथमिकता: पद भरने की प्रक्रिया में सबसे पहले SC और ST वर्ग के पद भरे जाएंगे।
शेष पदों के लिए: इन आरक्षित पदों को भरने के बाद, बचे हुए पदों के लिए सभी वर्गों के दावेदारों को मौका दिया जाएगा।
लिस्ट बनाने का आधार (श्रेणी 1): क्लास-1 स्तर के अधिकारियों (जैसे कि डिप्टी कलेक्टर) के लिए चयन सूची योग्यता (Merit) और वरिष्ठता (Seniority) दोनों के आधार पर तैयार की जाएगी।
लिस्ट बनाने का आधार (श्रेणी 2): क्लास-2 तथा उससे निचले स्तर के पदों के लिए वरिष्ठता (Seniority) को ही एकमात्र आधार बनाकर चयन सूची बनाई जाएगी।
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सवाल : अब कौनसे लिए निर्णय और तर्क
जवाब: पिछला घटनाक्रम: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने वर्ष 2016 में राज्य सरकार की पिछली पदोन्नति नीति को असंवैधानिक घोषित करते हुए रद्द कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट में चुनौती: इस निर्णय के विरोध में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया, जिसने मामले में यथास्थिति (Status Quo) बनाए रखने का निर्देश दिया।
नई नीति का आगमन: प्रदेश में नौ वर्षों से प्रमोशन में आरक्षण नहीं मिलने के कारण, राज्य सरकार इसी साल (2025 में) एक नई पदोन्नति नीति लेकर आई।
नई नीति को चुनौती: सरकार की इस नई नीति को सपाक्स (SAPAKS) सहित कई याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।
याचिकाकर्ताओं का तर्क: याचिकाकर्ताओं ने अपनी दलीलों में कहा कि पुरानी प्रमोशन पॉलिसी के अदालत में विचाराधीन रहने के दौरान नई पॉलिसी लाना सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन करने जैसा है।
सरकार का आश्वासन: इन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान, राज्य सरकार ने मौखिक रूप से यह आश्वासन (Oral Undertaking) दिया था कि वह नई पॉलिसी के तहत फिलहाल कोई प्रमोशन नहीं करेगी।
वर्तमान स्थिति: सरकार के इस मौखिक आश्वासन के कारण ही नई प्रमोशन पॉलिसी को अभी तक लागू नहीं किया जा सका है।
पिछली सप्ताह सुनवाई: सरकार ने कोर्ट में कहा था कि नई प्रमोशन पॉलिसी 2016 के बाद के प्रमोशन पर लागू होगी, जबकि 2016 से पहले के प्रमोशन में वर्ष 2002 के नियमों प्रभावी रहेंगे। इसके बाद के प्रमोशन में वर्ष 2025 के नियम प्रभावी होंगे।
हाईकार्ट: ने राज्य सरकार को नए नियम के अनुसार क्वांटिफायबल डेटा एकत्र करते हुए सील बंद लिफाफे में पेश करने कहा था।
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सवाल : गोपनीय रिपोर्ट कितना जरूरी
जवाब: गोपनीय रिपोर्ट की अनिवार्यता (ACR): वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (ACR) संतोषजनक होने पर ही कर्मचारी पदोन्नति पाने के हकदार होंगे।
पिछले दो वर्षों की रिपोर्ट में से कम से कम एक रिपोर्ट ‘उत्कृष्ट’ (Outstanding) श्रेणी की हो।
या पिछले सात सालों की रिपोर्ट्स में से कम से कम चार रिपोर्ट्स ‘ए+’ (A+) श्रेणी की हों।
ACR नहीं तो प्रमोशन पर रोक
यदि कर्मचारी की गोपनीय रिपोर्ट (ACR) किसी भी कारणवश (विशेषकर कर्मचारी की गलती से) तैयार नहीं हो पाई है, तो वह पदोन्नति के योग्य नहीं माना जाएगा।
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CM Mohan Yadav Vs Digvijaya Singh: छत्तीसगढ़ के कुख्यात नक्सली हिडमा के एनकाउंटर (Naxal Madvi Hidma) को लेकर उठे विवाद में मध्य प्रदेश की राजनीति भी तेज हो गई है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह (Digvijaya Singh) द्वारा एनकाउंटर पर सवाल उठाने के बाद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव (CM Mohan Yadav ने कड़ा जवाब दिया है। सीएम ने एक वीडियो संदेश जारी करते हुए कहा कि दिग्विजय सिंह नक्सलवाद के खिलाफ चल रहे अभियान में उल्टा नक्सलियों का साथ देते दिखाई देते हैं और यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें…