Roop Chaudas 2025: रूप चौदस को क्यों कहा जाता है नरक चतुर्दशी? क्या है श्रीकृष्ण से संबंध, जानिए पौराणिक कथा

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Roop Chaudas 2025 Significance Story: दीवाली से एक दिन पहले आने वाली रूप चौदस, जिसे नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली भी कहा जाता है, इसका खास धार्मिक और पौराणिक महत्व है. माना जाता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध किया था और संसार को उसके अत्याचारों से मुक्त कराया था. यही कारण है कि इस दिन सुंदरता, शुद्धता और बुराई पर अच्छाई की विजय का पर्व मनाया जाता है. आइए जानते हैं आखिर रूप चौदस को नरक चतुर्दशी क्यों कहा जाता है और इसका श्रीकृष्ण से क्या संबंध है.

क्या है इस दिन की कहानी?

Roop Chaudas 2025: रूप चौदस को क्यों कहा जाता है नरक चतुर्दशी? क्या है श्रीकृष्ण से संबंध, जानिए पौराणिक कथा
क्या है इस दिन की कहानी?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, बहुत समय पहले नरकासुर नाम का एक राक्षस था। वह बहुत शक्तिशाली और क्रूर था। उसने देवताओं को परेशान किया और 16,000 से ज़्यादा कन्याओं को बंदी बना लिया था। जब भगवान श्रीकृष्ण को यह बात पता चली, तो उन्होंने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ मिलकर नरकासुर से युद्ध किया।

आखिरकार भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया और सभी कन्याओं को आजाद कराया। इस जीत की खुशी में लोगों ने घरों में दीपक जलाए। तभी से यह दिन नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली के रूप में मनाया जाने लगा। यह कहानी हमें सिखाती है कि बुराई कितनी भी बड़ी क्यों न हो, अंत में अच्छाई की ही जीत होती है।

राजा रंति देव की कथा

एक और कथा है राजा रंति देव की। उन्होंने एक बार गलती से एक ब्राह्मण को भोजन नहीं दिया था। इस कारण उन्हें बहुत पछतावा हुआ। तब एक ज्ञानी ने उन्हें सलाह दी कि वे कार्तिक मास की चतुर्दशी को व्रत रखें और ब्राह्मणों को भोजन कराएं।

राजा रंति देव ने ऐसा ही किया और उन्हें अपने पापों से मुक्ति मिली। इसलिए कहा जाता है कि इस दिन दान और पूजा करने से पापों से छुटकारा मिलता है।

कुछ जगहों पर हनुमान जन्मोत्सव

कुछ जगहों पर हनुमान जन्मोत्सवकुछ जगहों पर हनुमान जन्मोत्सव
कुछ जगहों पर हनुमान जन्मोत्सव

भारत के कुछ हिस्सों में यह दिन भगवान हनुमान जी के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है। इसलिए इस दिन हनुमान जी की पूजा करने की परंपरा भी है।

इस दिन का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व

शरीर और मन की शुद्धि

रूप चौदस को अभ्यंग स्नान करने की परंपरा है। लोग सुबह जल्दी उठकर तिल के तेल से मालिश करते हैं और उबटन लगाकर स्नान करते हैं। माना जाता है कि इससे शरीर और मन दोनों शुद्ध होते हैं।

रूप और सुंदरता का दिन

इसी कारण इस दिन को रूप चौदस कहा जाता है। महिलाएं नए कपड़े पहनती हैं, श्रृंगार करती हैं और अपने रूप को निखारती हैं। कहा जाता है कि इस दिन सुंदरता और सकारात्मक ऊर्जा दोनों बढ़ती हैं।

दीप जलाने की परंपरा

शाम के समय घर के बाहर दीपक जलाए जाते हैं। यह दीपक बुराई, अंधकार और नकारात्मकता को दूर भगाने का प्रतीक है। हर दीप यह संदेश देता है अंधकार मिटाओ और प्रकाश फैलाओ।

लक्ष्मी का स्वागत

इस दिन देवी लक्ष्मी की बड़ी बहन दरिद्रा को विदाई दी जाती है, ताकि अगले दिन लक्ष्मी जी का स्वागत हो सके। माना जाता है कि ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है।

इस दिन क्या-क्या किया जाता है?

1. सुबह जल्दी उठकर अभ्यंग स्नान किया जाता है।

2. तेल और उबटन से मालिश कर तन-मन को शुद्ध किया जाता है।

3. यमराज की पूजा और दीपदान किया जाता है, ताकि यम से भय दूर हो।

4. दान और भोजन कराना शुभ माना जाता है।

5. घर की सफाई, सजावट और दीप जलाना जरूरी माना जाता है।

6. शाम को परिवार के साथ दीप जलाकर छोटी दिवाली मनाई जाती है।

रूप चौदस हमें सिखाती है कि हमें अपने भीतर की बुराइयों जैसे गुस्सा, झूठ, लालच और अहंकार को खत्म करना चाहिए। जैसे भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया, वैसे ही हमें अपने अंदर की नकारात्मकता को मिटाकर अच्छाई का दीप जलाना चाहिए।

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