Sambhal Jama Masjid Dispute: संभल जामा मस्जिद सर्वेक्षण मामले में हाईकोर्ट का फैसला सुरक्षित, मस्जिद कमेटी ने जताई आपत्ति

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हाइलाइट्स

  • संभल मस्जिद विवाद पर हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा
  • मस्जिद कमेटी ने केस को लेकर कोर्ट में आपत्ति जताई
  • हिंदू पक्ष ने मस्जिद की जगह मंदिर होने का दावा किया

Sambhal Jama Masjid Dispute: उत्तर प्रदेश के संभल जिले की जामा मस्जिद और हरिहर मंदिर विवाद पर दाखिल रिवीजन याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को फैसला सुरक्षित रख लिया है। यह याचिका जामा मस्जिद इंतजामिया कमेटी की ओर से दाखिल की गई थी, जिसमें दीवानी मुकदमे की पोषणीयता (Maintainability) को चुनौती दी गई है।

विवाद का बैकग्राउंड

यह मामला उस समय सामने आया जब हरिशंकर जैन और सात अन्य वादियों ने संभल की दीवानी अदालत (सिविल जज सीनियर डिवीजन) में एक मुकदमा दायर कर दावा किया कि संभल के कोट मोहल्ला पूर्वी क्षेत्र में स्थित जामा मस्जिद, मुगल सम्राट बाबर द्वारा वर्ष 1526 में ध्वस्त किए गए हरिहर मंदिर के स्थान पर बनाई गई थी। वादियों ने हरिहर मंदिर में पूजा-अर्चना और प्रवेश का अधिकार मांगा है।

दीवानी अदालत की कार्यवाही

19 नवंबर 2024 को दायर इस मुकदमे पर उसी दिन अदालत ने तत्काल सुनवाई करते हुए एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति कर दी थी। साथ ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) को मस्जिद का प्रारंभिक सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया गया था। सर्वेक्षण 19 और 24 नवंबर को किया गया तथा रिपोर्ट 29 नवंबर 2024 तक दाखिल करने को कहा गया।

इतनी त्वरित कार्यवाही को लेकर मस्जिद कमेटी ने आपत्ति जताई और इलाहाबाद हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दाखिल कर दी। याचिका में तर्क दिया गया कि दीवानी अदालत ने बिना मुकदमे की पोषणीयता पर विचार किए ही सर्वेक्षण का आदेश दे दिया और इससे पहले ही हिंदू पक्ष की दलीलों को स्वीकार कर लिया गया।

हाईकोर्ट की सुनवाई

इस रिवीजन याचिका पर न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की एकल पीठ ने सुनवाई करते हुए पहले ASI को दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था, लेकिन जवाब न मिलने पर अतिरिक्त समय दिया गया।

अब सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट ने इस याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। कोर्ट ने पहले ही संभल की दीवानी अदालत में चल रही पूरी कार्यवाही पर अस्थायी रोक (Stay) लगा दी थी।

क्या है मामला?

हिंदू पक्ष का दावा: मस्जिद, हरिहर मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी।
मुस्लिम पक्ष का तर्क: मुकदमा बिना कानूनी आधार के दाखिल हुआ, पोषणीय नहीं है।
मस्जिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देकर दीवानी अदालत की प्रक्रिया को चुनौती दी है।

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