Sawan 2025: ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का रहस्य! जहाँ रात को शिव-पार्वती खेलते हैं चौसर, सुबह मिलते हैं बिखरे हुए पासे
Sawan 2025: हिंदू धर्म की मान्यता अनुसार शिव जी जहां-जहां पर प्रकट हुए वहां पर स्थिति शिवलिंगो को ज्योतिर्लिंग के रूप मे पूजा जाता है । हिंदू देवी देवताओं मे शिव जी का खास महत्व है इनको संहार का देवता माना जाता है । इनके द्वादश ज्योतिर्लिंगों का भी बहुत महत्व है। भगवान शिव से जुड़े द्वादश ज्योतिर्लिंगों में मध्य प्रदेश स्थित ओंकारेश्वर का चौथा स्थान आता है। आइये आज हम इस चौथे ज्योतिर्लिंग की चर्चा करते है ।
पौराणिक मान्यता के अनुसार:
यहां पर भगवान शिव नर्मदा नदी के किनारे ॐ के आकार वाली पहाड़ पर विराजमान हैं। हिंदू धर्म में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिग को लेकर कई मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि भोलेनाथ तीनों लोकों का भ्रमण करने के बाद यहां विश्राम करने आते है । कहते की अगर आपने इस ज्योतिर्लिंग पर जल नहीं चढ़ाया तो आपकी सारी तीर्थयात्रा अधूरी है । शास्त्र मान्यता के अनुसार जमुनाजी में 15 दिन का स्नान तथा गंगाजी में 7 दिन का स्नान जो फल प्रदान करता है, उतना पुण्यफल नर्मदाजी के दर्शन मात्र से प्राप्त हो जाता है।
स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है:
मान्यता है कि यहां स्थापित शिवलिंग स्वयंभू है, यानी ये स्वयं प्रकट हुआ है। ओंकारेश्वर मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां पर दर्शन एवं पूजन करने पर व्यक्ति के सारे पाप दूर हो जाते हैं,और जीवन में चल रही समस्याएं हल हो जाती हैं, अटके काम शुरू हो जाते हैं और अशांत मन शांत हो जाता है।
मंदिर का निर्माण:
इस मंदिर के निर्माण को लेकर कुछ खास साक्ष्य मौजूद नहीं है । जानकारी के मुताबिक इस मंदिर के निर्माण के लिए सन 1063 में राजा उदयदित्य ने चार पत्थर स्थापित कराए थे, जिनमें जिनपर संस्कृति में अंकित स्तोत्रम थे। इसके बाद सन 1195 में राजा भरत सिंह चौहान ने इस स्थान का पुनर्निमाण किया। इसके बाद मान्धाता पर रियाज़, मालवा, परमार ने राज किया। वर्ष 1824 में इस क्षेत्र पर ब्रिटिश सरकार का कब्ज़ा हो गया।
मंदिर का रहस्य:
जिस प्रकार उज्जैन स्थित महाकालेश्वर की भस्म आरती विश्व प्रसिद्ध है ,उसी प्रकार ओंकारेश्वर मंदिर की शयन आरती विश्व प्रसिद्ध है। इस मंदिर मे सुबह मध्य और शाम तीनों प्रहर की आरती की जाती है ।
मान्यता है कि रात्रि के समय भगवान शिव यहां पर प्रतिदिन सोने के लिए लिए आते हैं। मान्यता यह भी है कि इस मंदिर में महादेव माता पार्वती के साथ चौसर खेलते हैं। किन्तु यह आज तक किसी ने देखा नहीं है। यही कारण है कि रात्रि के समय यहां पर चौपड़ बिछाई जाती है और आश्चर्यजनक तरीके से जिस मंदिर के भीतर रात के समय परिंदा भी पर नहीं मार पाता है, उसमें सुबह चौसर और उसके पासे कुछ इस तरह से बिखरे मिलते हैंं,जैसे रात्रि के समय उसे किसी ने खेला हो।
महादेव माता पार्वती के साथ चौसर
कहते हैं कि हर प्रथा के साथ एक कुप्रथा भी प्रचलित होतीं है उसी प्रकार इस मंदिर से भी जुड़ी कुछ कुप्रथा है जो अब समाप्त कर दी गई है । यहां मान्धाता पर्वत पर एक खड़ी चढ़ाई वाली पहाड़ी है। इसके सम्बन्ध में एक प्रचलन था कि जो कोई मनुष्य इस पहाड़ी से कूदकर अपना प्राण नर्मदा में विसर्जित कर देता है, उसकी तत्काल मुक्ति हो जाती है। इस कुप्रथा के चलते बहुत सारे लोग सद्योमुक्ति (तत्काल मोक्ष) की कामना से उस पहाड़ी पर से नदी में कूदकर अपनी जान दे देते थे। इस प्रथा को ‘भृगुपतन’ नाम से जाना जाता था। सती प्रथा की तरह इस प्रचलन को भी अँग्रेजी सरकार ने प्रतिबन्धित कर दिया। यह प्राणनाशक अनुष्ठान सन् 1824 ई. में ही बन्द करा दिया।
मंदिर जाने के लिये :
ओंकारेश्वर मंदिर इंदौर से करीब 80 किमी दूर है। इंदौर आने के लिए देश के सभी बड़े शहरों से वायु मार्ग, रेल मार्ग और सड़क मार्ग के जुड़ा हुआ है। इंदौर आने के बाद यहां से बस या पर्सनल टैक्सी की मदद से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।