छत्तीसगढ़ के भोग के बिना अधूरी है पुरी की जगन्नाथ यात्रा, जानें 124 साल पुरानी परंपरा की अनोखी कहानी

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Chhattisgarh: आज देशभर में जगन्नाथ यात्रा की धूम है, ओडिसा के पूरी में जगन्नाथ भगवान की रथ यात्रा निकाली जा रही है. वहीं पूरी के जगन्नाथ मंदिर का छत्तीसगढ़ से भी खास कनेक्शन है. जहां के गरियाबंद जिले के देवभोग से भगवान जगन्नाथ के लिए भोग भेजा जाता है. ये परंपरा 124 साल से चली आ रही है.

पुरुषोत्तम पात्र (गरियाबंद)

Chhattisgarh: आज देशभर में जगन्नाथ यात्रा की धूम है, ओडिसा के पूरी में जगन्नाथ भगवान की रथ यात्रा निकाली जा रही है. वहीं पूरी के जगन्नाथ मंदिर का छत्तीसगढ़ से भी खास कनेक्शन है. जहां के गरियाबंद जिले के देवभोग से भगवान जगन्नाथ के लिए भोग भेजा जाता है. ये परंपरा 124 साल से चली आ रही है.

देवभोग से जगन्नाथ मंदिर के लिए भेजा जाता है भोग

गरियाबंद जिले के देवभोग में भगवान जगन्नाथ के आदेश पर फसल कटाई के बाद इसी तरह गांव में जाकर अनाज को लगान के रूप में वसूलते हैं. प्रति साल वसूले गए लगान से ही मंदिर का संचालन और भोग लगाया जाता है. इतना ही नही प्रति वर्ष रथ यात्रा से पहले लगान वसूली का एक भाग पुरी के जगन्नाथ मंदिर भोग लगने भेजा जाता है. तब से इस स्थान का नाम देवभोग पड़ गया. 124 साल पहले बनाई गई इस रिवाज का पालन आज की पीढ़ी भी कर रहा है.

यहां भगवान जगन्नाथ खुद लगान वसूलते है

बात 18वीं शताब्दी की है, टेमरा ग्राम निवासी रामचंद्र बेहेरा तीर्थ से लौटे तो भगवान का मूर्ति पूरी से साथ ले आए, यह भगवान का नील माधव स्वरूप था. जिसे झराबहाल में पीपल पेड़ के नीचे रख पूजा करते रहे, तत्कालीन जमीदारों ने भरी सभा में मूर्ति की शक्ति का परीक्षण कर दिया, परिणाम चौकाने वाले थे इसलिए तत्काल ही जमीदारों ने मंदिर निर्माण के लिए स्थान का चयन कर दिया, यह भी एलान किया की इसका निर्माण जन भागीदारी से होगी. 1854 में निर्माण शुरू हुआ जो 1901 में पुरा हुआ. निर्माण होते ही संचालन के लिए भी भागीदारी तय हुई.

कई सालों से चली आ रही परंपरा

संचालन के लिए अनाज का हिस्सा देने ग्रामीणों ने शपथ लिया,फिर इस शपथ को जीवंत रखने पिपल पेड़ के नीचे पु शपथ शिला गाड़ दिया गया,यह शिला पीढ़ी दर पीढी मंदिर संचालन के लिए भगवान को दिए जाने वाले लगान की याद दिलाती है. साथ ही इसी भोग का हिस्सा पूरी में भगवान को चढ़ाया जाता है तभी इसका नाम कुसुम भोग से देवभोग पड़ा.

भले इस मंदिर के निर्माण में 47 साल लग गए पर रिवाज पूरी के तर्ज पर ही निभाई जाती है. पूरी में जगन्नाथ जी का वेश करने वाले महाराणा के परिवार के सदस्य ही इस मंदिर में भगवान का वेश तैयार करते हैं. जो पूरी नहीं जा पाते वो यहां दर्शन व सेवा कर पूरी में मिलने वाले लाभ की भागीदारी बनते है. भगवान जगन्नाथ के लिए होने वाले प्रत्येक पर्व का रस्म देवभोग मंदिर में भी बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है.

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