राज-उद्धव के साथ आने से टेंशन में कांग्रेस! हिंदी बनाम मराठी की बहस में कहां खड़ी है पार्टी?

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कांग्रेस नेतृत्व अपने सहयोगी उद्धव को भी नाराज नहीं करना चाहता है. 2024 लोकसभा चुनाव के बाद से इंडिया ब्लॉक पहले से ही बिखरा नजर आ रहा है.

Marathi vs Hindi: महाराष्ट्र की राजनीति के लिहाज से शनिवार का दिन बेहद खास था. इस दिन करीब 20 सालों की कड़वाहट भुलाकर शिवसेना-यूबीटी प्रमुख उद्धव ठाकरे और मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे ने एक साथ मंच साझा किया. इस दौरान राज ठाकरे ने एक बयान जिसकी काफी चर्चा रही. उन्होंने कहा कि जो काम बालासाहेब ठाकरे नहीं कर सके, वह देवेंद्र फड़णवीस ने कर दिखाया. इशारा साफ था कि भाषा-विवाद के कारण ही दोनों भाई करीब आए. हालांकि, इस दौरान एक और बात है जिसकी सबसे अधिक चर्चा हो रही है और वो यह कि कांग्रेस ने न्योते के बावजूद भी इस ठाकरे बंधुओं के ‘मिलन समारोह’ से क्यों दूरी बनाई.

उद्धव सेना की एकमात्र राष्ट्रीय सहयोगी कांग्रेस ने इन बदली हुई परिस्थितियों पर दूर से ही नजर बनाए रखने का प्लान बनाया और इस ‘मिलन समारोह’ का हिस्सा नहीं बनी. इसके बाद चर्चा होना लाजिमी था. अगर कांग्रेस के इस फैसले के पीछे वजहों पर गौर करें तो यह देखना होगा कि अगले कुछ महीनों में बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर ऐलान हो सकता है. दूसरी तरफ, आगामी महाराष्ट्र नगर निकाय चुनाव, जिनमें बीएमसी चुनाव भी शामिल हैं. राज ठाकरे मराठी मानुष की बात तो करते ही हैं, साथ वह कट्टर हिंदुत्व वाली राजनीति भी करते हैं. ऐसे में कांग्रेस तत्काल उद्धव-राज के साथ मंच साझा करने में हिचकिचा रही थी.

राज-उद्धव के साथ आने पर क्या सोचती है कांग्रेस?

महाराष्ट्र कांग्रेस के नेताओं का मानना ​​है कि ठाकरे भाइयों का फिर से साथ आना ‘मराठी फर्स्ट’ और ‘हिंदी विरोधी’ रुख का असर सीमित रहेगा और यह मुंबई और बीएमसी चुनावों तक ही सीमित रहेगा. कांग्रेस ऐसी स्थिति में उनके साथ मंच साझा नहीं करना चाहती थी लेकिन उद्धव ठाकरे को नाराज करना भी नहीं चाहती थी.

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, “यह आधे-अधूरे मन से दिया गया निमंत्रण था. एनसीपी इस कार्यक्रम में गई थी, लेकिन उनको अपमानित किया गया, उनके नेताओं को मंच पर भी नहीं बुलाया गया. दोनों ठाकरे भाई मराठी आंदोलन का सारा क्रेडिट लेना चाहते थे. यह अच्छी बात है कि हम नहीं गए, क्योंकि कांग्रेस हिंदी विरोधी आंदोलन का हिस्सा नहीं थी. अजीबोगरीब बयानों के बावजूद हमारे नेताओं ने इस मुद्दे को ज्यादा तूल नहीं दिया, क्योंकि उन्हें दिल्ली में पार्टी आलाकमान के निर्देश को लेकर स्थिति साफ नहीं थी.”

बीएमसी चुनाव को लेकर है सारी कवायद

उद्धव गुट की सहयोगी कांग्रेस का कहना है कि उनकी पार्टी राष्ट्रीय दल है और बिहार समेत कई राज्यों में खुद को मजबूत करने की दिशा में काम कर रही है. लिहाजा, पार्टी आक्रामक हिंदी विरोधी रुख नहीं अपना सकती थी. महाराष्ट्र कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे की नजरें केवल बीएमसी चुनावों पर है और हम बीएमसी चुनावों में अकेले जाना चाहते हैं. उनका कहना है कि कांग्रेस ने कभी भी बीएमसी चुनावों के लिए किसी के साथ गठबंधन नहीं किया है.

हिंदी ‘थोपे’ जाने को कांग्रेस ने बनाया मुद्दा

महाराष्ट्र के कांग्रेस नेताओं को पार्टी आलाकमान से भी शिकायतें हैं कि राज्य में कुछ भी करने से पहले ‘परमिशन’ लेनी पड़ती है. उनका कहना है कि यहां मराठी मुद्दा नहीं था बल्कि हिंदी थोपे जाने को लेकर सारा विवाद था. स्थानीय कांग्रेस नेताओं का कहना है कि अगर क्लास वन से ही हिंदी शुरू किया जाता है तो निश्चित तौर पर मराठी भाषा इससे प्रभावित होगी.

महाराष्ट्र की राजनीति में आए इस अचानक बदलाव के बाद कांग्रेस काफी सतर्क है और फूंक-फूंककर कदम रखना चाहती है. महाराष्ट्र में मराठी बनाम हिंदी को लेकर बहस तेज हो गई है. राज ठाकरे खुले मंच से कहते हैं, “बेवजह किसी को मत मारो, लेकिन अगर कोई ज्यादा नाटक करता है, तो उसके कान के नीचे जरूर बजाओ और अगली बार जब किसी को पीटो, तो उसका वीडियो मत बनाओ.” ये बयान दर्शाता है कि बीएमसी चुनावों से पहले मनसे का एजेंडा क्या है.

उद्धव को नाराज नहीं करना चाहती कांग्रेस

हालांकि, कांग्रेस नेतृत्व अपने सहयोगी उद्धव को भी नाराज नहीं करना चाहता है. 2024 लोकसभा चुनाव के बाद से इंडिया ब्लॉक पहले से ही बिखरा नजर आ रहा है. ऐसे में कांग्रेस महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी को बरकरार रखने के लिए उत्सुक है. हालांकि पार्टी बीएमसी चुनावों में अकेले उतरना चाहती है. कांग्रेस ने ऐसे में राज ठाकरे-उद्धव के मिलन समारोह से दूरी बनाए रखने, ‘हिंदी थोपने’ के खिलाफ बोलने, हिंदी विरोधी आंदोलन और हिंसा की घटनाओं पर चुप रहने की रणनीति अपनाई, इस बात की उम्मीद के साथ कि एमवीए में दरार के बावजूद उद्धव उसका अहम हिस्सा बने रहेंगे.

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