Kanwar Yatra: कांवड़ यात्रा की शुरुआत किसने की थी? राम और परशुराम से इसका क्या कनेक्शन है? जानें क्यों कंधे पर उठाई जाती है कांवड़

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महादेव का सबसे प्रिय महीना सावन 11 जुलाई 2025 से शुरू हो गया है, और इसी दिन से कांवड़ यात्रा भी शुरु हो जाएगी, कांवड़ यात्रा के दौरान शिवभक्त गंगा और अन्य पवित्र नदियों से जल कांवड़ में उठाकर शिवलिंग पर अर्पित करते है, ऐसी धार्मिक मान्यता है, की कांवड़ यात्रा करने वाले कावंड़ियों की सभी मनोकामना भोलेनाथ पूरी कर देते है।

सबसे पहले किसने की थी कांवड़ यात्रा

अलग- अलग क्षेत्रों में अलग-अलग मान्यताएं है, कुछ विद्वान् मानते है, की भगवान परशुराम ने सबसे पहले कांवड़ यात्रा की थी, ऐसी मान्यता है की परशुराम जी ने गढ़मुक्तेश्वर से जल लाकर यूपी के बागपत स्थित पुरा महादेव पर चढ़ाया था, उसी समय से लाखों शिवभक्त गढ़मुक्तेश्वर से जल ला कर पुरा महादेव का जलाभिषेक करते है।

श्रवण कुमार

कुछ विद्वान् श्रवण कुमार का पहला कांवड़िया मानते है, इनका मानना है, की त्रेतायुग में अपने अंधे माता -पिता को कावंड में बैठाकर हरिद्वार लाए थे, और उन्हें गंगा स्नान कराया था, इतना ही नहीं वापसी में वे अपने साथ गंगाजल भी लेकर आए थे।

रावण

पुराणों में बताया गया है, की कांवड़ यात्रा परम्परा समुद्र मंथन से जुडी है, देवताओं और दानवों ने जब अमृत के लिए समुद्र मंथन किया था, इस दौरान समुद्र से विष भी निकाला था, इस विष को भोलेनाथ ने ग्रहण किया था, इसके कारण भगवान शंकर का कंठ नीला हो गया था, इसी कारण उनका नाम नीलकंठ पद गया भगवान शिव का परमभक्त रावण ने महादेव को विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त कराने के लिए कांवड़ से जल भरकर पुरा महादेव स्थित शिव मंदिर में जलाभिषेक किया था।

कंधे पर कांवड़ को उठाना श्रवण कुमार की तरह सेवा और समर्पण को दिखाता है, ऐसे में कावंड़िए अपने कंधे पर ही कावंड को उठाते है, शिवभक्त अपने कंधे पर कावंड उठाकर भोलेनाथ के प्रति अपनी आस्था और भक्ति को दिखाते है, कंधे पर भार को उठाने अहंकार के त्याग का प्रतीक है, कावड़िए जब अपने कंधे पर कावंड लेकर शिवधाम के चलता है, तो वह अपनी व्यक्तिगत पहचान और अहंकार को छोड़ स्वयं को महादेव को समर्पित कर देता है।

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