बिहार में वोटर लिस्ट पर मचे घमासान के बीच EC ने क्यों दिया आर्टिकल 326 का हवाला?

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आयोग के मुताबिक, बिहार में चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रीविजन अभियान के तहत बिहार के मतदाताओं की भागीदारी से अब तक 57% से भी अधिक फॉर्म जमा किए जा चुके हैं.

बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन रिवीजन

Bihar Special Intensive Revision: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले निर्वाचन आयोग के एक अभियान पर राज्य में सियासत गरमाई हुई है. राजद के नेतृत्व में महागठबंधन ने बुधवार को स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन के खिलाफ राज्यव्यापी बंद बुलाया था. महागठबंधन के घटक दलों के नेता चुनाव आयोग के इस अभियान के खिलाफ सड़कों पर उतरे, तो राहुल गांधी ने भी जमकर आयोग पर निशाना साधा. विपक्षी दलों की आपत्तियों के बीच, साल 2003 की मतदाता सूची को लेकर बहस छिड़ी हुई है. सवाल ये है कि क्या 2003 की मतदाता सूची से ही बिहार के वोटरों का भविष्य तय होगा.

चुनाव आयोग का कहना है कि सशक्त जनतंत्र के लिए शुद्ध मतदाता सूची अनिवार्य है. आयोग के मुताबिक, बिहार में चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रीविजन अभियान के तहत बिहार के मतदाताओं की भागीदारी से अब तक 57% से भी अधिक फॉर्म जमा किए जा चुके हैं. इस अपडेट के बीच निर्वाचन आयोग ने संविधान के आर्टिकल 326 के प्रावधानों का अपने सोशल मीडिया पोस्ट में उल्लेख किया है.

क्या है आर्टिकल 326?

इसके मुताबिक, लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के लिए निर्वाचनों का आधार वयस्क मताधिकार होता है. इसका मतलब है कि भारत का प्रत्येक नागरिक जिसकी उम्र 18 साल हो चुकी है, वह मताधिकार का प्रयोग कर सकता है. नागरिक ऐसी तारीख को जो समुचित विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन नियत की जाए, कम से कम 18 वर्ष का है और इस संविधान या समुचित विधान-मंडल द्वारा बनाई किसी विधि के अधीन अनिवास, चित्तविकृति, अपराध या भ्रष्ट या अवैध आचरण के आधार पर अन्यथा निरर्हित नहीं कर दिया जाता है, मतदाता के रूप में पंजीकृत होने के योग्य हैं.

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मतदाता सूची में माता-पिता का नाम, तो नहीं चाहिए दस्तावेज

निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार के मुताबिक, एसआईआर अभियान से यह सुनिश्चित होगा कि सभी पात्र लोग इसमें शामिल हों. निर्वाचन आयोग ने बिहार की 2003 की मतदाता सूची अपनी वेबसाइट – पर अपलोड कर दिया है. इसके मुताबिक, 4.96 करोड़ मतदाताओं को कोई दस्तावेज जमा कराने की आवश्यकता नहीं है. इन 4.96 करोड़ मतदाताओं के बच्चों को अपने माता-पिता से संबंधित कोई अन्य दस्तावेज जमा कराने की जरूरत नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला

बिहार में जारी ईसी के अभियान का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है. राजद ने भी इसके खिलाफ कोर्ट में याचिका दी है और गलत टाइमिंग का हवाला दिया है. राजद का तर्क है कि चुनाव आयोग ने जल्दबाजी में गलत समय पर प्रक्रिया शुरू की है और इस वजह से बड़ी संख्या में मतदाता अपने अधिकारों से वंचित हो जाएंगे. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में आज होने वाली सुनवाई पर भी सभी की नजरें होंगी.

चुनाव आयोग ने क्या कहा?

विपक्ष इसे चुनाव में गड़बड़ी के अंदेशे से भी जोड़ रहा है और आयोग की मंशा पर सवाल उठा रहा है. वहीं विपक्ष के आरोपों पर चुनाव आयोग का साफ किया है कि जिनके नाम 1 जनवरी 2003 को जारी वोटर लिस्ट में शामिल हैं, उन्हें कोई दस्तावेज नहीं देने होंगे और वे सभी आर्टिकल 326 के तहत प्राथमिक तौर पर भारत के नागरिक माने जाएंगे. साथ ही जिनके माता-पिता के नाम मतदाता सूची में हैं, उन्हें केवल अपनी जन्म तिथि और जन्म स्थान से जुड़े दस्तावेज देने होंगे.

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