अमेरिका में क्यों सफल नहीं हो पाती नई पार्टी? 150 सालों से ‘गधे’ और ‘हाथी’ का राज!

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1912 में राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट ने ‘बुल मूस’ नाम की पार्टी बनाई थी. इस पार्टी ने 88 इलेक्टोरल वोट तो हासिल किए, लेकिन अगले चुनाव तक यह पार्टी टिक भी नहीं पाई. इन मिसालों से साफ है कि अमेरिका में नई पार्टियों के लिए अपनी जगह बनाना कितना मुश्किल रहा है.

US Politics: दुनिया के सबसे अमीर बिज़नेसमैन एलन मस्क ने अपनी नई ‘अमेरिका पार्टी’ बनाकर अमेरिकी राजनीति में धमाकेदार एंट्री की है. डोनाल्ड ट्रंप के ‘बिग ब्यूटीफुल बिल’ का विरोध करते हुए मस्क ने चुनौती दी थी कि अगर यह बिल पास हुआ तो वह नई पार्टी बनाएंगे और उन्होंने ऐसा कर भी दिखाया. लेकिन सवाल उठता है कि क्या मस्क अमेरिकी राजनीति में अपनी जगह बना पाएंगे? क्या वह पिछले 150 सालों से अमेरिका पर राज कर रही डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टियों के दबदबे को तोड़ पाएंगे?

नाम का बहुदलीय, काम का दो दलीय

सुनने में भले ही लगे कि अमेरिका में कई राजनीतिक पार्टियां हैं, लेकिन असलियत में वहां डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी का ही बोलबाला रहा है. इन्हीं दो पार्टियों में से कोई एक सत्ता में आती है. इनके अलावा रिफॉर्म पार्टी, लिबरटेरियन पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी और ग्रीन पार्टी जैसी कई छोटी पार्टियां भी हैं, जिन्हें ‘थर्ड पार्टी’ कहा जाता है. लेकिन चुनावों में इनकी भूमिका न के बराबर ही रहती है.

क्यों नहीं मिली कामयाबी?

अमेरिका में समय-समय पर नई पार्टियां बनती और गायब होती रही हैं. एलन मस्क की तरह ही, 1992 में एक मशहूर बिज़नेसमैन हेनरी रॉस पेरोट ने रिफॉर्म पार्टी बनाई थी. उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव लड़ा और उन्हें 19% वोट भी मिले, लेकिन कोई भी इलेक्टोरल कॉलेज वोट नहीं मिल पाया और न ही वह किसी राज्य में पहले नंबर पर आए. यानी, इतने वोट मिलने के बावजूद उनकी कोशिश बेकार गई.

इससे पहले, 1912 में राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट ने ‘बुल मूस’ नाम की पार्टी बनाई थी. इस पार्टी ने 88 इलेक्टोरल वोट तो हासिल किए, लेकिन अगले चुनाव तक यह पार्टी टिक भी नहीं पाई. इन मिसालों से साफ है कि अमेरिका में नई पार्टियों के लिए अपनी जगह बनाना कितना मुश्किल रहा है.

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डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन का दबदबा क्यों?

अमेरिका में डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी का दबदबा कई वजहों से है.

अलग-अलग सोच, फिर भी साथ: डेमोक्रेटिक पार्टी को प्रगतिशील विचारों वाली माना जाता है, जो समाज में समानता के लिए सरकारी मदद की बात करती है. वहीं, रिपब्लिकन पार्टी को पारंपरिक और राष्ट्रवादी सोच वाली पार्टी माना जाता है, जो व्यक्तिगत आज़ादी और पुराने मूल्यों को बढ़ावा देती है. अमेरिकी वोटर्स इन्हीं दो बड़ी विचारधाराओं के इर्द-गिर्द घूमते हैं.

महान नेताओं का घर: फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट, जॉन एफ कैनेडी, बराक ओबामा, अब्राहम लिंकन, रोनाल्ड रीगन और डोनाल्ड ट्रंप जैसे कई बड़े अमेरिकी नेता इन्हीं दो पार्टियों से निकले हैं.

चुनाव प्रणाली का साथ: अमेरिका का चुनावी सिस्टम ही ऐसा है जो दो-दलीय व्यवस्था को सपोर्ट करता है.

वोट कटवा पार्टी की छवि: अमेरिकी वोटर अक्सर मानते हैं कि छोटी पार्टियां सिर्फ वोट बांटने का काम करती हैं, इसलिए वे ऐसी पार्टियों को वोट देना पसंद नहीं करते.

पैसे और प्रचार की कमी: नई पार्टियों के सामने सबसे बड़ी दिक्कत फंडिंग की होती है. चुनाव के लिए पैसा जुटाना उनके लिए पहाड़ चढ़ने जैसा होता है. मीडिया में भी उन्हें ज़्यादा जगह नहीं मिलती.

संगठन का अभाव: बड़ी पार्टियों के पास मजबूत संगठन और देश भर में फैली पकड़ होती है, जो नई पार्टियों के पास नहीं होती. रॉस पेरोट ने 1992 में प्रचार पर करोड़ों रुपये खर्च किए थे और एक समय तो वह बाकी उम्मीदवारों से भी आगे निकल गए थे, लेकिन जनता ने उन्हें वोट नहीं दिया क्योंकि उनके पास कोई मजबूत आधार नहीं था.

राष्ट्रहित में एक जैसी सोच: कई बार विचारधारा में अंतर होने के बावजूद, राष्ट्रहित के मुद्दों पर डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टियां एक जैसी सोच रखती हैं, जिससे उनकी राजनीति मध्यमार्गी हो जाती है. खासकर विदेश मामलों में, ये दोनों पार्टियां अपनी विचारधारा से हटकर भी अमेरिकी हित में फैसले लेती हैं.

एलन मस्क के सामने बड़ी चुनौती!

इन सभी कारणों को देखते हुए, एलन मस्क के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती है. अमेरिका की राजनीतिक व्यवस्था ऐसी है जहां 150 सालों से दो ही पार्टियों का दबदबा रहा है. इस मजबूत दीवार को भेदना मस्क के लिए आसान नहीं होगा, खासकर जब देश के मतदाता नई पार्टियों को ‘वोट कटवा’ मानते हैं.

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